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९० का दशक

बबीता प्रजापति ‘वाणी’
झाँसी (उत्तरप्रदेश)
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घर एक सलोना था,
अपना कोना-कोना था
आँगन में आती थी धूप सलोनी,
फुर्सत थी आज से दूनी।

माँ आँगन में दाने बिखराती,
चीं-चीं करके चिड़िया खाती
घर के बाहर आम का पेड़,
छाँह में जिसकी बच्चे खेलें।

थक जाते जब बच्चे सारे,
पेड़ पे रस्सी का झूला पुकारे
चाट-चौपाटी कहाँ थी तब,
ठेले पर पानी-पूरी खाते थे सब।

फेरी वाले फेरी लगाते,
तरह-तरह की चीजें लाते
कामकाज करके माताएं,
सांझ ढले चबूतरे पर बतियाएं।

रसोई से उठती सौंधी सुगन्ध,
हवा भी चलती थी मन्द-मन्द
पानी कुएं का पीते थे सब,
खग भी सांझ करते कलरव।

बड़े वृद्धजन बैठे द्वारे,
आते-जाते जन, रामराम उच्चारै।
क्या समय कभी वो आएगा ?
हृदय में प्रेम रह पाएगा॥

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