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कोहरा

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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नया उजाला-नए सपने…

बढ़ रही है धुंध, छा रहा है कोहरा,
खत्म हो रहा दिसंबर अब तो पहरा।

आएगा नया साल लेकर राज गहरा,
देखें क्या लाता है वो हमारे लिए जरा।

कोहरा आता ही है कुछ दिनों के लिए,
फिर नया सवेरा आएगा हमेशा के लिए।

ये जो धुंध है कुछ ही दिनों के लिए है,
कट जाएगा ये भी नई रोशनी के लिए।

कोहरा भी जरूरी है कुछ लोगों के लिए,
धुंध भी जरूरी है मौसम बदलने के लिए।

कोहरे में दिखता नहीं है कुछ भी कहीं,
दुर्घटनाएं हो जाती है तब वहीं की वहीं।

कोहरे में बाहर निकलना हो जाता है मुश्किल,
धुंध देखती रहती है हँसती रहती खिलखिल।

जाने वाला तो हमेशा रुलाता ही रहा है,
खट्टी-मीठी यादों संग दिसंबर भी जा रहा है।

दीया बुझने से पहले फफक कर जलता है,
दिसंबर जाने से पहले भरपूर कोहरा दे जाता है।

बदल जाते हैं कई चेहरे, इस धुंध और कोहरे में,
‘दीनेश’ हम पहचान नहीं पाते चरित्र दोहरे में॥

परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।

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