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अकेले हैं तो क्या गम है

पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
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“माई डियर लेखिका पत्नी, आज शाम को सरप्राइज पार्टी है”, सजल ने प्यार से उन्हें अपने आगोश में लेकर चूम लिया था। “शाम को तैयार रहना… मैं गाड़ी भेज दूँगा,
बाय…” कहते हुए वह ऑफिस चले गए।
आज सरप्राइज पार्टी सजल क्यों दे रहे हैं…! न बर्थ-डे है, न ही एनिवर्सरी। वह काफी देर तक सोचती रहीं, फिर राशि अतीत में खो गई थी। बच्चों के हॉस्टल जाने के बाद वह सासू जी की देखभाल में लगी रही। उसकी दुनिया पैरालाइज्ड मम्मी जी की सेवा करने तक ही सीमित हो गई थी। बच्चे उस पर नाराज भी होते, ”मॉम आपको तो अम्मा जी के सिवा कोई दिखता ही नहीं…।”
फिर माँ जी के दुनिया से विदा हो जाने के बाद उसके जीवन में ऐसा अकेलापन छा गया, कि वह गम के कारण डिप्रेशन का शिकार हो गई। उदासी और आत्महत्या का विचार उस पर हावी होता जा रहा था, वह खाना-पीना भूल कर लेटे हुए छत को निहारती रहती।
सजल ने नाराज होकर उनसे अनबोला साध लिया था। नौबत तलाक तक पहुँच गई थी। तभी
एक दिन बचपन की सहेली ऊष्मा आई और उसने उसके हाथों में जबर्दस्ती पेन पकड़ा कर मायके की यादों पर संस्मरण लिखने को मजबूर किया और उसको गृहलक्ष्मी पत्रिका में भेज दिया।
आज भी याद है, जब उनका वह पहला संस्मरण स्वीकृत होने के साथ ही वाउचर आया तो ऐसा अनुभव हुआ, मानों उनके पंख लग गए हैं। बस उसी पल से उनकी दुनिया ही बदल गई थी।
उनकी कहानियाँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगीं। अब लेखन जगत में वह जानी जानें लगीं थीं।
कॉलबेल की आवाज ने उनकी तंद्रा भंग की थी। आज सजल खुद बाँहें पसारे मुस्कुरा रहे थे, “जल्दी तैयार हो जाओ, तुम्हारे लेखक- लेखिका मित्र तुमसे मिलने का इंतजार कर रहे हैं।’
सजल ने जब गुपचुप रूप से उनकी कहानियों का संग्रह ‘नीड़’ के विमोचन के लिए उनकी प्रिय लेखिका मालती जोशी जी को आमंत्रित किया था। उनको देखना, संवाद करना उनके जीवन का अविस्मरणीय पल था, खुशी के मारे उनकी आँखैं छलछला उठीं…
इस अवसर पर दो शब्द कहिए…
“मित्रों, अकेले हैं तो क्या गम है… जीवन में बहुत कुछ है करने को… पढ़िए, लिखिए, गरीबों को पढ़ाइए, बागवानी करिए, सिलाई, बुनाई, कुकिंग, जो भी शौक आप पूरा नहीं कर पाई, उन्हें अपने अकेलेपन में पूरा करिए। खुशियाँ बाँहें पसारे आपका इंतजार कर रही हैं।”