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अक्षय तृतीया:सर्वसिद्ध मुहूर्त वाला दिन

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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‘अक्षय’ शब्द का मतलब है-जिसका क्षय या नाश न हो। मत्स्यपुराण, पद्मपुराण, विष्णुधर्मोत्तर पुराण, स्कन्दपुराण में इस तिथि का विशेष उल्लेख है। यह दिन अबूझ या सर्वसिद्ध या स्वयंसिद्ध मुहूर्त में माना गया है, इसलिए सनातन धर्म में अक्षय तृतीया का दिन बेहद शुभ माना जाता है। जो वस्तु आपके जीवन में शुभता लाती हो, उसका क्रय और किसी भी शुभ कार्य जैसे दान, जप करना, इससे उसका अक्षय यानी कभी समाप्त ना होने वाला पुण्य लाभ मिलता है।दूसरे शब्दों में इस दिन कोई भी शुभ कार्य प्रारम्भ किया जा सकता है। जैसे-विवाह, गृह – प्रवेश या वस्त्र-आभूषण, घर, वाहन, भूखंड आदि की खरीददारी, कृषि कार्य का प्रारम्भ आदि सुख-शान्ति, समृद्धि प्रदायक होता है। इसलिए ही सनातन धर्म के जानकारों ने लिखा है –
“न माधव समो मासो न कृतेन युगं समम्।
न च वेद समं शास्त्रं न तीर्थ गंगयां समम्॥”
चूँकि माधव मास का पर्यायवाची वैशाख मास होता है, इसलिए उपरोक्त श्लोक का अर्थ हुआ-वैशाख मास के समान कोई मास नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं हैं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है।इसलिए वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की अक्षय फलदायी तृतीया(अक्षय तृतीया) के समान कोई तिथि नहीं है।
अक्षय तृतीया से सम्बन्धित कुछ रोचक पौराणिक घटनाएं (इतिहास के पन्नों में अपना विशेष स्थान) बल्कि सुख-शान्ति, समृद्धि प्रदायक उपाय-
-भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है। यानि सतयुग और त्रेता युग का प्रारम्भ आज ही के दिन हुआ था।
-अक्षय तृतीया के दिन प्रभु विष्णु के ३ अवतारों की पूजा की जाती है।
-यह भी जान लें कि प्रभु विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम उन ८ पौराणिक पात्रों में से एक हैं, जिन्हें अमरता का वरदान प्राप्त है। इसी अमरता के चलते तिथि अक्षय मानी गई है।
-ऐसी मान्यता है कि माता लक्ष्मी और प्रभु श्री विष्णु का विवाह इसी दिन हुआ था।
-आज ही के दिन माँ गंगा का अवतरण धरती पर हुआ था। यानि भगीरथ जी तपस्या के बाद गंगा जी को इसी दिन धरती पर लाए थे।
-ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतरण भी आज ही के दिन हुआ था ।
-भंडार और रसोई की देवी माता अन्नपूर्णा जिनका दूसरा नाम ‘अन्नदा’ है, का जन्म भी अक्षय तृतीया के दिन हुआ था।
-आज ही के दिन प्रभु महादेव ने कुबेर की तपस्या से खुश हो ऐश्वर्य का आशीर्वाद दिया जिससे उन्हें माता लक्ष्मी की प्राप्ति हुई।
-कुबेरजी ने भी तुरन्त ही माता लक्ष्मीजी की पूजा इसी दिन से ही प्रारम्भ कर दी। इसी पूजा के आधार पर ही भारत में अक्षय तृतीया वाले दिन लाल कपड़े में नए बही-खाते शुरू किए जाते हैं।
-द्वापर युग में प्रभु श्रीकृष्ण के परम बाल सखा सुदामा ने अक्षय तृतीया के दिन ही प्रभु श्रीकृष्ण से मुलाकात कर उपहार में उन्हें बड़े ही संकोच के साथ सूखे चावल भेंट किए थे।
-महर्षि वेदव्यास और गणेशजी द्वारा इस शुभ दिन से ही महाकाव्य महाभारत के लेखन का प्रारंभ हुआ था।
अक्षय तृतीया जैन धर्मावलम्बियों के महान धार्मिक पर्वों में से एक है। इस दिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान (भगवान आदिनाथ) ने १ वर्ष की पूर्ण तपस्या करने के पश्चात इक्षु (शोरडी-गन्ने) रस से पारायण किया था। इसी कारण से जैन धर्म में इस दिन को इक्षु तृतीया भी कहते हैं । इसलिए इक्षु तृतीया वाला यह दिन जैनों के पहले भगवान की स्मृति में मनाया जाता है।
निष्कर्ष यही है कि यह समय हमें आत्म विवेचन की प्रेरणा देता है। अर्थात अपनी योग्यता को निखारने के साथ क्षमता-सामर्थ्य को भी बढ़ाके लिए हर दृष्टि से अति उत्तम माना जाता है।

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