सीमा जैन ‘निसर्ग’
मेदिनीपुर (प.बंगाल)
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अनमोल खज़ाना खो बैठे,
हम छत से हाथ धो बैठे
जीवन भर जिसके साथ रहे,
वो गुज़रे जमाने के हो बैठे।
सूनी दुनिया कर चले गए,
बैठक में चुप्पी छोड़ गए
जो देख हमें चहकते थे,
इस जन्म का साथ छोड़ गए।
जाने किस दुनिया में अब होंगे,
जीवन कैसा जीते होंगे…?
उनकी आँखों का तारा थे,
क्या हमसे दूर खुश होंगे…?
जीवन अनबूझ पहेली है,
दुनिया का मर्म सिखाती है।
जो आया, इक दिन जाएगा,
फैसला अजब सुनाती है॥