गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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आया मनभावन वसंत….
२-४ दिन से मुम्बई वाले भवन-समूह के बगीचे में दोस्तों के बीच यही चर्चा रही कि, पतझड़ ही अभी तक शुरू नहीं हुआ है और बसन्त पंचमी नजदीक आ रही है, जबकि बसन्त पंचमी तक वन-उपवन, बाग-बगीचों में लताएं नए-नए लाल-हरे कोमल पत्तों से ही नहीं, बल्कि नाना प्रकार के पुष्पों से भी भरे हुए नजर आते हैं।इस प्रकार मौसम और प्रकृति में जो मनोहारी बदलाव होते हैं, उससे प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। यानि हम मानवों के साथ पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं।
इसी मनोहारी बसन्त ऋतु का वर्णन करते हुए प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत ने बहुत कुछ लिखा है। आज की परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए उनकी यह पंक्तियाँ बहुत ही याद आ रही हैं-
“चंचल पग दीपशिखा से धर
गृह मग, वन में आया वसंत
सुलगा फाल्गुन का सूनापन
सौंदर्य शिखाओं में अनंत।”
अर्थात बसंत के आगमन के साथ ही दिन बड़े होने लगते हैं, जो इस बात का संकेत है कि, यह जागृत होने का समय है। अपने मन-मस्तिष्क को जागृत रखें, अपनी ऊर्जा को सही कार्यों में लगाएं, यही संदेश लाता है बसंत हम सबके लिए।
यह सही है कि, शीत ऋतु जैसी ठण्ड तो नहीं है, लेकिन बदलती जलवायु के कारण इस बार अभी तक ठण्ड गई ही नहीं है, जबकि दिन अवश्य बड़े होने शुरू हो गए हैं। और जब तक यह ठण्ड कम नहीं होगी, हल्की गर्म हवाएं चलेंगी नहीं, तब तक पतझड़ सम्भव कैसे होगा!और बिना पतझड़ के नई-नई लताएं, नए-नए लाल-हरे कोमल पत्ते, नाना प्रकार के पुष्प कैसे नजर आएंगे!
इस जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण हम मानव ही हैं। सामान्यतः, जलवायु में परिवर्तन कई वर्षों में धीरे-धीरे होता है, पर जिस तरह हम धरती माता, नदियों वगैरह का दोहन कर रहे हैं, उसका प्रभाव जलवायु में भी पड़ने लगा है। असंतुलित पर्यावरण के चलते मौसमों पर प्रभाव देशभर में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में देखा जा रहा है। तापमान बढ़ गया है, मौसम लंबे हो गए हैं। हम सभी वर्षा का स्वभाव भी बदला हुआ अनुभव करते हैं। अतः, हमें अपने-आपको बदलना होगा, तभी हम मनभावन बसन्त ऋतु से लाभान्वित हो पाएंगे।