ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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रचनाशिल्प:अभिनव छंद में बारहमासी, ८/६ की मापनी…
गड़गड़-गडगड़, मेघ करे…,
झरझर-झरझर नीर झरे।
सावन-भादो, तड़पाए,
फरफर-फरफर, पवन चले…।
क्वाँर कार्तिक, भरमाए,
भरभर भरभर, भूमि करे…।
अगहनी पूस, शरमाए,
कड़कड़ कड़कड़ शीत परे…।
माघ फगुनवा मन डोले,
सरसर-सरसर, रंग उडे…।
आग चैत बैसाख लगे,
चटक-चटक कर देह जले…।
डरवाए आसाढ़ ज्येष्ठ,
टपटप-टपटप, बूंद गिरे…।
परिचय-ममता तिवारी का जन्म १ अक्टूबर १९६८ को हुआ है और जांजगीर-चाम्पा (छग) में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती ममता तिवारी ‘ममता’ एम.ए. तक शिक्षित होकर ब्राम्हण समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य (कविता, छंद, ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नित्य आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो विभिन्न संस्था-संस्थानों से आपने ४०० प्रशंसा-पत्र आदि हासिल किए हैं।आपके नाम प्रकाशित ६ एकल संग्रह-वीरानों के बागबां, साँस-साँस पर पहरे, अंजुरी भर समुंदर, कलयुग, निशिगंधा, शेफालिका, नील-नलीनी हैं तो ४५ साझा संग्रह में सहभागिता है। स्वैच्छिक सेवानिवृत्त शिक्षिका श्रीमती तिवारी की लेखनी का उद्देश्य समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।