श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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प्यार के विरह में तड़प कर बह रही है आँसू की धार,
रोते छोड़कर गया प्रेम, लौटकर नहीं आया मेरा प्यार।
हर पल डूबी रहती हूँ मैं, अपनी आँसुओं की धार में,
दिल पे चोट खाई है ‘देवन्ती’, मित्र अजनबी के प्यार में।
सखियाँ ठिठोली करती है, क्यों अजनबी से प्यार किया,
अपने हीं हाथों से दिल देकर, खुद जीना दुश्वार किया।
परदेसी पराया धन होता है, कभी अपना नहीं होता,
दिल का सौदागर क्या जानेगा, मेरे लिए कौन रोता ?
अँसुवन की धार से लिख रही हूँ मैं, प्रेम की कहानी,
जादू किया अजनबी, मिटता नहीं उसका नाम-निशानी।
बेपनाह प्यार किया था अजनबी से, दिल दे के मैं हार गई,
चन्द दिनों के प्यार में बावरी बनी, सुख-चैन बिसार गई।
जैसे तारों की बारात में चाँद, छुप-छुप कर वहाँ रहता है,
अजनबी के दिल में क्या है, किस दिल में छुपा रहता है।
परम सत्य है,बहुत सुन्दर है, प्रेम प्यार भरी यह कहानी,
प्रेम नहीं निभाया तो, तड़पती है दोनों की जिन्दगानी॥
परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |