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उफ़! ये जरूरतें

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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वो रसोई में
सुबह उठते ही,
भजन गुनगुनाने की आदत
ईश्वर को नमन कर,
भगोनी के पानी में उबाल आने के बाद
अदरक, लोंग, काली मिर्च कूटकर डालना,
फिर इलायची डालना
लम्बी साँस लेते ही,
चाय की महक और स्वाद…
रसोई का वातावरण खिलखिला उठता।

दिनभर बर्तनों की खटर-पटर,
सब्जियों के छोंक का धुआं
खदबदाती कढ़ी का मिज़ाज,
चावलों की भीनी-भीनी सी खुशबू।

दम और लोच लगा-लगा कर,
आटे का गूंथना
बीच-बीच में माथे से पसीना पोंछना,
एक-आध बूंद आटे में मिल जाना।

किसी की आवाज पर,
गूंथे हुए आटे के हाथों से भागना
दरवाजा खोलना,
सामने मुझे देख
भट्टी तपी रसोई के दहकते वातावरण
के बाबजूद, चंपई मुख पर,
फूल सी मुस्कान लाना।
आँखों में ख़ुशी के दीप जलाना।

अब कहां…?
अब तो नौकरानी दरवाजा खोलती है
कहती है-
“मैडम की मीटिंग है, देर से घर आएंगी,
साहब! आपके लिए चाय लाऊं।”
चाय की तलब के बाबजूद भी
मैं अनमने मन से कह देता हूँ-
“मन नहीं है।”

सोफे पर निढाल होकर,
पुराने दिन याद करता हूँ
ज़िन्दगी की भाग-दौड़ में से,
कुछ पल ठहरने का इंतजार करता हूँ।
उफ़! ये जरूरतें,
कितना-कुछ छीन लेतीं हैं हमसे॥

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।


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