आचार्य गोपाल जी ‘आजाद अकेला बरबीघा वाले’
शेखपुरा(बिहार)
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ये घटा सावन की सुहानी तो है,
दर्दे-दिल की अपनी कहानी तो है।
यादों के थपेड़े सहते मगर,
उन्हीं से दिल में रवानी तो है।
ख्व़ाब दिल में मचलते हैं मेरे बहुत,
आज हाले-दिल उनको बताना तो है।
छोड़ दूं साथ कैसे उनको ‘आजाद’,
उन्हीं से रंगीन अपनी कहानी तो है।
कैसे बयां करूं कहानी इश्क-ए-चमन,
लब खामोश हैं आँखों में पानी तो है।
भूल जाऊं मैं कैसे प्यार के वादे,
आज भी वह मेरी दीवानी तो है।
माना वो रूठी है मुझसे मगर,
करके जतन उसे मनाना तो है।
आजाद अकेला मैं कब तक रहूं,
दिल की अगन भी बुझानी तो है॥