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आत्ममुग्ध

ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
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आत्ममुग्ध हो निकल पड़ा हूँ,
फिर से अपनी मंजिल ओर
चारों दिशाओं ने पट खोले हैं,
खुशियाँ महक रही चहुंओर।

सीमित उर में ख्वाब असीम,
मन चंचल चित चोर हुआ है
मंत्रमुग्ध बेसुध तन और मन,
हृदय स्पंदन घनघोर हुआ है।

पथरीली ऊँची डगर लक्ष्य की,
बस आगे बढ़ता जाऊंगा
जैसे तट पर गरजता पानी,
वैसे ही हिम्मत अब पाऊंगा।

काँटों से भरा जीवन जग में,
समतल राह अब बनाऊंगा
खण्ड-खण्ड भले हो जाऊं,
विषमता कभी ना लाऊंगा।

आत्ममुग्ध-सा हो गया हूँ,
स्नेहअग्नि में जल जाने को।
मन की तृष्णा व्याकुल हो गई,
असीम तत्व अब पाने को॥

परिचय- ताराचंद वर्मा का निवास अलवर (राजस्थान) में है। साहित्यिक क्षेत्र में ‘डाबला’ उपनाम से प्रसिद्ध श्री वर्मा पेशे से शिक्षक हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,कविताएं एवं आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आप सतत लेखन में सक्रिय हैं।

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