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आर्यावर्त की हिंदी हूँ

ज्योति नरेन्द्र शास्त्री
अलवर (राजस्थान)
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मैं आर्यावर्त की हिंदी हूँ,
हिंदुस्तान का गुणगान हूँ मैं
कभी सूर में, कभी रहीम में,
तुलसी के मानस का गान हूँ मैं।

प्रेमचंद का उपन्यास हूँ मैं,
छंद, सुरों का विन्यास हूँ मैं
भाषाओं के भाल की मैं बिंदी हूँ,
भारत की पहचान मैं हिंदी हूँ।

सरिताओं की निर्मल धारा-सी,
मैं सदियों से बहती आई
कभी ‘निराला’, कभी ‘दिनकर’ की,
रचनाओं में मैंने चमक दिखाई।

इस विशद विस्तृत जग का,
अप्रतिम काव्य संसार हूँ
लेखकों की लेखनी, और कवियों की कल्पनाओं की
मैं कभी खत्म ना होने वाली उड़ान हूँ।
मैं आर्यावर्त की हिंदी हूँ,
मैं भारत की पहचान हूँ॥