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ये प्रीत की डोर

डॉ. श्राबनी चक्रवर्ती
बिलासपुर (छतीसगढ़)
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तू एक छोर, मैं एक छोर,
ये प्रीत की डोर
न पड़े कमजोर,
बंधे पुरजोर।

तूफान मचाए कितना भी शोर,
आंधी कर दे हमें झकझोर
खिंचा चला आये मेरी ओर,
झूमे जब मन का मोर।

कब आएगा वो सुहाना भोर,
मिलन होगा जब चाँद से चकोर।
थक गई अंखियाँ पंथ निहार,
रुकना नहीं है रख मन में जोर॥

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