शीलाबड़ोदिया ‘शीलू’
इंदौर (मध्यप्रदेश )
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स्वरा ने अपने बच्चों के हक के लिए कोर्ट में केस लगा रखा था, आज कोर्ट में सुनवाई थी। २ दिन से उसे बुखार था। वकील के पहले वह कोर्ट पहुँच चुकी थी। बच्चे को सम्हालते- सम्भालते वह थक गई थी। दोनों एक ही छत के नीचे रहते थे। स्वरा एक अखबार की एडिटर थी, पति भी नामी कम्पनी में मैनेजर था, पर पत्नी की सैलरी के लालच में उसने अपने परिवार में कलह मचा रखा था। स्वरा को वह तरह-तरह से परेशान करता था। अपने बच्चों तक की परवाह नहीं करता था। उसने नीचे गिरने की हर हद पार कर दी थी। फिर भी वह बच्चों के लिए और सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण सब सहे जा रही थी। अपने परिवार को बचाने के लिए हर कोशिश कर चुकी थी, लेकिन उसका पति बस एक कमाऊ औरत की तरह उसका उपभोग किए जा रहा था, जिससे वह बहुत तनाव में रहती थी। और आखिर कोर्ट तक आना पड़ा।
लंच होने वाला ही था, पर स्वरा की वकील अभी तक आई नहीं। तबीयत के कारण और इंतजार करके स्वरा थक चुकी थी। वकील के आते ही कोर्ट रूम में दोनों जाते हैं। पेपर पर साईन किए कि, एक अनजान हाथ उसके कंधे पर था। उसने कहा-“मेरा तलाक हो गया है हम घर में रहते हैं, तो हमारी कोई इज़्ज़त नहीं है क्या ?”
स्वरा के भावों को उसने समझ लिया था। उसकी आँखों में थमे पानी को वह भाँप गई थी। बोली-“एक रोटी मिले, लेकिन इज़्ज़त की।” स्वरा के हाथ-पैर काँप रहे थे, वह बैठ गई।
उसके पति के वकील ने केस खारिज करने की मांग की। पति और वकील उसके खिलाफ बोले जा रहे थे। जज साहब ने स्वरा से काउंसिल के बारे में पूछा। स्वरा ने कहा-“साहब मैं १० साल से समझौता ही तो करती आ रही हूँ। बस अब नहीं कर सकती।” कहते-कहते उसकी आँखों का बाँध टूट चुका था और पानी बहे जा रहा था। वह बोली- “अब मैं इस आदमी के साथ नहीं रहना चाहती। अपना और अपनों का बहुत अपमान करवा चुकी, अब नहीं।” उसके दिमाग में एक आवाज गूँज रहीं थीं बस इज़्ज़त की एक रोटी…। और स्वरा तो कमाती थी, फिर भी उसे इज़्ज़त नहीं मिल रहीं थीं। मन में यही सवाल था-आखिर कब तक पुरुष हमें पैरों की जूती समझेंगे…?
परिचय-शीला बड़ोदिया का साहित्यिक उपनाम ‘शीलू’ और निवास इंदौर (मप्र) में है। संसार में १ सितम्बर को आई शीला बड़ोदिया का जन्म स्थान इंदौर ही है। वर्तमान में स्थाई रूप से खंडवा रोड पर ही बसी हुई शीलू को हिन्दी, अंग्रेजी व संस्कृत भाषा का ज्ञान है, जबकि बी.एस-सी., एम.ए., डी.एड. और बी.एड. शिक्षित हैं। शिक्षक के रूप में कार्यरत होकर आप सामाजिक गतिविधि में बालिका शिक्षा, नशा मुक्ति, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, बेटी को समझाओ अभियान, पेड़ बचाओ अभियान एवं रोजगार उन्मुख कार्यक्रम में सक्रिय हैं। इनकी लेखन विधा-कविता, कहानी, लघुकथा, लेख, संस्मरण, गीत और जीवनी है। प्रकाशन के रूप में काव्य संग्रह (मेरी इक्यावन कविता) तथा १५ साझा संकलन में रचनाएँ हैं। कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी को स्थान मिला है। इनको मिले सम्मान व पुरस्कार में गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड सम्मान (साझा संकलन), विश्व संवाद केंद्र मालवा (मध्य प्रदेश) द्वारा सम्मान, कला स्तम्भ मध्य प्रदेश द्वारा सम्मान, भारत श्रीलंका सम्मिलित साहित्य सम्मान और अखिल भारतीय हिन्दी सेवा समिति द्वारा प्रदत्त सम्मान आदि हैं। शीलू की विशेष उपलब्धि गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में रचना का शामिल होना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य साहित्य में उत्कृष्ट लेखन का प्रयास है। मुन्शी प्रेमचंद, निराला, तुलसीदास, सूरदास, अमृता प्रीतम इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज गुरु हैं। इनका जीवन लक्ष्य-हिन्दी साहित्य में कार्य व समाजसेवा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी हमारी रग-रग में बसी है।”
