कुल पृष्ठ दर्शन : 243

इस देश न आना लाडो

दिप्तेश तिवारी दिप
रेवा (मध्यप्रदेश)

****************************************************

नव पल्लवित कोमल कली अभी खिली नहीं थी क्यारी में,
उजास अभी हुआ नहीं था,कुचक्र रचा अंधियारी ने।
माली बस कर ममता से रोप रहा था पौधों को,
तभी न जाने किस दानव ने रौंद दिया घरौंदों को।

खुशियों से भरी हुई थी संसार समाया देखूंगी,
खेल-कूद मस्ती और सतरंगी इंद्रधनुष भी देखूंगी।
शिखर चढूंगी,गगन छुंऊँगी आयाम नया मैं गढ़ दूंगी,
क्या पता था मुझको मैं ऐसे हैवानों के हाथ मरूँगी ?

सब सपने टूट गए मेरे और टूट गया है मेरा मन,
गर्भ में ही मार दो मुझे नहीं लेना अब जनम।
ये ज़ालिम है दुनिया,मुझे यूँ अंग-अंग न काटो,
सब बहनों से विनती मेरी इस देश न आना लाडो।

क्या उन हैवानों के भीतर कोई इंसान नहीं था,
आग हवस की जलती थी तो क्या कोई शमशान नहीं था।
थोड़ा तो सोचा होता हम बागों की कलियां हैं,
हमसे ही तो संसार तुम्हारा और तुम्हारी गलियां हैं।

कैसी आग लगी है,इन खूनी हैवान दरिंदों में,
हिंसा का बीज उगा है,इन हत्यारे बांझ परिंदों में।
कोई बैशाखी पकड़ा दो,इस लंगड़े-लूले शासन को,
लाल किले में लटका दो ऐसे दुष्कर्मी दुःशासन को।

जो बेटी की इज्जत से खेले,उसकी छाती में गोली हो,
और उसी दरिंदे के रक्त से रक्तिम होली हो।
अब नहीं सहन हो पायेगा कोई भी अन्याय,
कानून नहीं,तो हे मानव तुम दे डालो न्याय।

मैं कलम धरोहर अपनी कविता से शोले बरसाऊंगा,
अच्छे दिन की गुहार लगाने वालों को बस इतना बतलाऊंगा।
जिस दिन मेरी बहना रात,घर को बिना डरे आ जाएगी,
उस दिन ही तो अच्छे दिन की किरणें घनघोर घटा में छाएगी॥

परिचय- दिप्तेश तिवारी का साहित्यिक उपनाम `दिप` हैl आपकी जन्म तिथि १७ जून २००० हैl वर्तमान में आपका निवास जिला रेवा (म.प्र.)स्थित गोलंबर छत्रपति नगर में है। आप अभी अध्ययनरत हैंl लेखन में आपको कविता तथा गीत लिखने का शौक है। ब्लॉग भी लिखने में सक्रिय श्री तिवारी की विशेष उपलब्धि कम समय में ही ऑनलाइन कवि सम्मेलन में सम्मान-पत्र मिलना है।

Leave a Reply