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ईर्ष्यालु मित्र

धर्मेंद्र शर्मा उपाध्याय
सिरमौर (हिमाचल प्रदेश)
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विक्रम एक सदाचारी, नैतिक, संस्कारी व नौजवान लड़का है। अपने आत्मसम्मान के लिए सदा लड़ता रहता है, परंतु किसी भी व्यक्ति को अपने व्यवहार से आहत नहीं करता है। आज फिर विक्रम को अपने कार्य क्षेत्र कार्यालय में बड़ी उपलब्धि हासिल हुई थी। वह काफी उत्साहित है। धीरे-धीरे प्रसिद्धि और सम्मान बढ़ने लगा। समाज में काफी वाह–वाही हो रही थी।
इधर, अमन (विक्रम का मित्र) भी लोगों में अपने मित्र के सम्मान की बजाय अपनी वाह–वाही में लगा रहता था। राधिका, जो विक्रम के कार्यालय की एक सहचारिणी है, सदा विक्रम की हर खुशी में साथ देती है। आज वह कुछ डरी-सहमी सी लग रही थी। विक्रम आश्चर्यचकित था, कि उसे ऐसी कोई बात याद ही नहीं थी, जिससे वह नाराज हो। वह उसे खुश करने की कोशिश में थोड़ा उपहास, व्यंग्य भी कर देता, परंतु उसका व्यवहार बदला नहीं था। वह सुन नहीं रही थी। उसे पता ही नहीं था, कि विक्रम का एक धोखेबाज मित्र अमन बार-बार राधिका को विक्रम के प्रति सहानुभूतिभरे व्यवहार के लिए चिढ़ाया करता था। इसलिए, अब समाज के डर से वह विक्रम की खुशी व गम से दूर रहना चाहती थी।
विक्रम आज बहुत दुखी था, क्योंकि राधिका द्वारा शिकायत करने पर पुलिस पूछताछ हेतु उसके कार्यालय में आई थी। विक्रम ने तुरंत राधिका से पूछा कि “तुमने ऐसा क्यों किया ?” राधिका मौन व शांत होकर दुःख मन में दबाए थी। अमन पुलिस वालों को बार-बार भड़का रहा था। आज विक्रम को यही समझ नहीं आ रहा था, कि अमन उसका मित्र है या शत्रु ???
विक्रम को आज ज़िंदगी ने एक नया सबक दिया था, कि ईर्ष्यालु मित्र कभी भी आपका सच्चा मित्र नहीं हो सकता। उससे सदा दूरी बनानी ही ठीक रहती है। पुलिस की कार्यवाही आगे की ओर बढ़ती जा रही थी, जो विक्रम के चरित्र व कार्यालय में उच्च कार्यशैली पर प्रश्न लगा रही थी ???
अब अमन उसके संकट के समय उसके साथ खड़ा नहीं था, बल्कि उसको अपमानित करने में लोगों को ओर अधिक भड़का रहा था।अब राधिका भी बहुत दूर जा चुकी थी, जो दुःखी होकर भी कुछ सुनना ही नहीं चाहती थी। आज उसे वह शिक्षा याद आ रही थी।

‘विपत्ति कसौटी जो कसे, सोई सांचे मीत।’ अर्थात् विपत्ति के समय जो साथ खड़ा हो, वही मित्र कहा जा सकता है।