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ईर्ष्या और द्वेष बनाम जलन

गोपाल मोहन मिश्र
दरभंगा (बिहार)
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मोटे तौर पर ईर्ष्या और द्वेष एक मनोभाव है। किसी को देखकर ईर्ष्या या जलन होना हम सब कभी न कभी महसूस करते ही हैं,पर कभी-कभी बात बिगड़ जाती है और हम अपने प्रतिद्वंदी से नफरत करने लग जाते हैं। उसे नुकसान पहुंचाने की कोशिश करने लग जाते हैं। इस तरह ईर्ष्या द्वेष में बदलने लग जाती है ।
ईर्ष्या और द्वेष एक सामान्य मनोभाव है,जो अक्सर हमारे मन में बनता-बिगड़ता रहता है और सब इससे दो-चार होते ही रहते हैं। उसमें भी ईर्ष्या और भी सामान्य भाव है,जबकि द्वेष की बात करें तो उसमें नकारात्मकता बहुत होती है। आप शब्दों से ही समझ सकते हैं कि किस कदर नकारात्मकता या घृणा भाव या शत्रु भाव द्वेष में होता है।

*ईर्ष्या क्या है ?
ईर्ष्या का अर्थ होता है-किसी की सफलता को देखकर अधीर होना,उन्नति देख कर बेचैन होना। यदि किसी में,किसी को सुखी-सम्पन्न देख कर या किसी के पास कोई कीमती या आकर्षक वस्तु देख कर उसे उस सुख-चैन या उक्त वस्तु से वंचित कर,उसका स्वयं हकदार बन जाने की इच्छा हो,तो वह भी ईर्ष्या कहलाती है। इस तरह के जलने या डाह करने वाले व्यक्ति को ईर्ष्यालु कहा जाता है।
वैसे ईर्ष्या का प्रयोग कभी-कभी अच्छे भाव का प्रदर्शन करने में भी होता है,जैसे-आपकी नृत्य कला पर किसे ईर्ष्या नहीं होगी।
ईर्ष्या आत्मविश्वास की कमी और असुरक्षा की भावना को दर्शाता है और ये खुद अपने ही मार्ग में बाधक बनने जैसा है। ईर्ष्या वैसे तो एक सामान्य सा मनोभाव है,लेकिन इसकी अति होना गंभीर परिणाम पैदा करता है। ईर्ष्या करके कोई व्यक्ति मानसिक रूप से खुद को ही क्षति न पहुंचा ले, इसीलिए त्याग,उदारता,निष्पक्षता आदि जैसे विचारों को प्राथमिकता देने की बात कही जाती है।

*द्वेष क्या है ?
द्वेष का अर्थ किसी को अपना प्रतिद्वंदी समझ कर उससे घृणा या नफ़रत करना,नापसंद करना,पराया समझना आदि है। इसमें किसी को हानि पहुंचाने का भाव होता है,जबकि ईर्ष्या में ऐसा नहीं होता है।
इसमें शत्रुता या बैर के भाव की प्रधानता होती है इसीलिए विरोध,वैमनस्य,शत्रुता आदि के कारण किसी का बनता हुआ काम बिगाड़ देना भी द्वेष है। द्वेष करने वाला द्वेषी कहलाता है। द्वेषी व्यक्ति के मन में घृणा,चिढ़,बैर आदि का भाव जागृत हो जाता है।
द्वेष में ‘वी’ उपसर्ग लगने से विद्वेष बना है,जो इसके और भी उग्र और तीव्र रूप को दर्शाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह दुश्मनी की सीमा तक किया जाने वाला द्वेष है।

*कुल मिलाकर अंतर-
कुल मिलाकर देखें तो ये दोनों शब्द एक-दूसरे का पर्याय प्रतीत होते हैं। आमतौर पर इसका इस्तेमाल भी एक-दूसरे के पर्याय के तौर पर ही किया जाता है,किन्तु सूक्ष्म स्तर पर देखें तो ऐसा नहीं है। ईर्ष्या करने वाला व्यक्ति जिससे ईर्ष्या करता है,उसे किसी प्रकार से उसके सुख से वंचित कर स्वयं उसका उपयोग करने की लालसा रखता है,जबकि द्वेष करने वाला व्यक्ति शत्रुतावश उसे नुकसान पहुंचाने की भी लालसा रखता है।

परिचय–गोपाल मोहन मिश्र की जन्म तारीख २८ जुलाई १९५५ व जन्म स्थान मुजफ्फरपुर (बिहार)है। वर्तमान में आप लहेरिया सराय (दरभंगा,बिहार)में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-ग्राम सोती सलेमपुर(जिला समस्तीपुर-बिहार)है। हिंदी,मैथिली तथा अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले बिहारवासी श्री मिश्र की पूर्ण शिक्षा स्नातकोत्तर है। कार्यक्षेत्र में सेवानिवृत्त(बैंक प्रबंधक)हैं। आपकी लेखन विधा-कहानी, लघुकथा,लेख एवं कविता है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी भावनाएँ व्यक्त करने वाले श्री मिश्र की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक- फणीश्वरनाथ ‘रेणु’,रामधारी सिंह ‘दिनकर’, गोपाल दास ‘नीरज’, हरिवंश राय बच्चन एवं प्रेरणापुंज-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शानदार नेतृत्व में बहुमुखी विकास और दुनियाभर में पहचान बना रहा है I हिंदी,हिंदू,हिंदुस्तान की प्रबल धारा बह रही हैI”

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