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ईश स्वरूप माँ

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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मुझको तो माँ की गोदी में स्वर्ग दिखाई देता है,
माँ का मधुरिम स्पर्श सभी मन की पीड़ा हर लेता है।

सहनशील ममता की मूरत हृदय समुंदर है जिसका,
करें समाहित हर पीड़ा अंतस विशाल कितना उसका
अपनी पीड़ा सदा छुपा सबकी पीड़ा हर लेती है,
आँखों में उमड़ा दरिया आँखों में ही पी लेती है
बस चेहरे से सदा झलकता प्यार दिखाई देता है।
माँ का मधुरिम स्पर्श सभी मन की पीड़ा हर लेता है…

बच्चों की पीड़ा में माँ ही रात बिताती आँखों में,
माँ की नजरों में उसका मुन्ना ही है बस लाखों में
त्योहारों पर सबको ही परिधान नया पहनाती है,
खुद पैबंद लगी साड़ी में जीवन सदा बिताती है
सबको खुशियां देकर उसका मन हर्षित हो लेता है।
माँ का मधुरिम स्पर्श सभी मन की पीड़ा हर लेता है…

माँ का है आशीष शीश मुझ-सा कोई धनवान नहीं,
वो कोई वेद-पुराण नहीं,माँ का जिसमें गुणगान नहीं
वो माँ ही है जिसने जाये हैं राम-कृष्ण से अवतारी,
माँ चरणों में ही झुकती है सदा-सदा दुनिया सारी।
भाग्यवान हो जग में माँ का प्यार उसे ही मिलता है,
माँ का मधुरिम स्पर्श सभी मन की पीड़ा हर लेता है…॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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