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उड़ा तिमिर का रंग

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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आ गए हैं सूर्य देव, कहते-कहते ‘शुभम सुप्रभात’,
टूट गए सुहाने सपने, सुनकर सूर्य देव की बात।

सूर्य की लालिमा आते देख, रात अंधेरी घबराई,
शून्य गगन में जाकर रात अंधेरी, छवि छुपाई।

आँगन में चिड़ियों के कलरव से, हो रहा है शोर,
मृदुल भाषा में चिड़िया बोली,-जागो, हो गई भोर।

उठो सूर्य देव आ गए हैं, गगन में छा गई है लाली,
थिरकने लगी सबके हाथों में, गरम चाय की प्याली।

लालिमा देख उठा रहीं हैं अम्मा, बेटा-बेटी,
सुबह-सवेरे ना उठने पर, लगाती हैं दो सोटी।

हँस कर बच्चे बोलते हैं, गगन में बनी है रंगोली,
चली है ‘देवन्ती’ पिया के घर, बनकर नयी-नवेली।

आ गई दुल्हन पानी भरने, लेकर मटका खाली,
पनघट में पनिहारन की, झूल रही कानों की बाली।

बगिया में फल-फूल की डाली में, छाई उमंग,
सुर्य की लालिमा देख के, उड़ा तिमिर का रंग॥

परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |