कुल पृष्ठ दर्शन : 14

उदारीकरण एवं आर्थिक सुधार का सूर्य अस्त

ललित गर्ग

दिल्ली
**************************************

भारत के धुरंधर अर्थशास्त्री, प्रशासक, कद्दावर नेता, २ बार प्रधानमंत्री रह चुके डॉ. मनमोहन सिंह का ९२ वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उनके निधन से आर्थिक सुधार का महासूर्य अस्त हो गया, भारतीय राजनीति में एक संभावनाओं भरा राजनीति सफर ठहर गया, जो राष्ट्र के लिए गहरा आघात है है। वे निश्चित ही आर्थिक सुधारों एवं उदारीकरण के नींव के पत्थर थे। उन्हें आर्थिक सुधार, भारत में वैश्विक बाजार व्यवस्था एवं उदारीकरण का जनक कहा जा सकता है। जिन्होंने न केवल देश-विदेश के लोगों का दिल जीता है, बल्कि विरोधियों के दिल में भी जगह बनाकर हमसे जुदा हो गए हैं। उनके व्यक्तित्व के इतने रूप हैं, इतने आयाम हैं, जिनमें वे व्यक्ति और नायक हैं, दार्शनिक और चिंतक हैं, शासक एवं लोकतंत्र उन्नायक हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने डॉ. सिंह के निधन पर कहा है कि “जीवन के हर क्षेत्र में उपलब्धियाँ हासिल करना आसान बात नहीं है। एक नेक इंसान के रूप में, एक विद्वान अर्थशास्त्री के रूप में उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।”

डॉ. सिंह ने ५ दशक तक सक्रिय राजनीति की, अनेक पदों पर रहे, पर दूसरों से भिन्न रहे। विलक्षण प्रतिभा, राजनीतिक कौशल, कुशल नेतृत्व क्षमता, दूरदर्शिता और बुद्धिमत्ता के कारण कांग्रेस के सभी नेता उनका लोहा मानते रहे, उनके लिए वे मार्गदर्शक ही नहीं, प्रेरणास्रोत भी हैं। वे बेहद नम्र इंसान और अहंकार से कोसों दूर थे। डॉ. सिंह ने भारत की अर्थव्यवस्था को वैश्विक बाजारों के लिए खोलने के लिए उदारीकरण सुधार लागू किए। उन्होंने लाइसेंस राज समाप्त कर निजीकरण और राज्य नियंत्रण में कमी की। डॉ. सिंह द्वारा विदेशी निवेश को आकर्षित करने के साथ निर्यात को भी प्रोत्साहित किया गया।
डॉ. सिंह ने अर्थशास्त्र के अध्यापक के तौर पर काफी ख्याति अर्जित की। वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष, रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमन्त्री के आर्थिक सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष भी रहे हैं। भारत के आर्थिक इतिहास में हाल के वर्षों में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब डॉ. सिंह भारत के वित्त मन्त्री रहे। डॉ. सिंह ने प्रधानमंत्री के रूप में पहले कार्यकाल के दौरान राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम लागू किया, वहीं सूचना का अधिकार अधिनियम भी आया। इसके अतिरिक्त उन्हें ऐतिहासिक भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर के लिए भी जाना जाता है। दूसरे कार्यकाल में उन्होंने बुनियादी ढांचे के विकास और सामाजिक कल्याण की योजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया। इस दौरान उन्हें २जी स्पेक्ट्रम घोटाला और राष्ट्रमंडल खेल घोटाले जैसे विवादों का भी सामना करना पड़ा। सभी जानते हैं कि उन्हें ‘मौन पीएम’ कहा जाता था, हालांकि उन्होंने सार्वजनिक रूप से इसका सटीक जवाब भी दिया था। जवाहर लाल नेहरू के बाद मनमोहन सिंह दूसरे ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने प्रधानमंत्री के तौर पर २ कार्यकाल पूरे किए।
२००४ से १४ तक डॉ. सिंह के दृष्टिकोण में केवल उच्च विकास नहीं, बल्कि समावेशी विकास और उस विश्वास की भी अहमियत थी जो सभी को ऊपर उठाने वाली लहरें उत्पन्न कर सके। यह विश्वास उनके द्वारा पारित किए गए विधेयकों में दिखाई देता है, जिनसे नागरिकों को भोजन का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, काम का अधिकार और सूचना का अधिकार सुनिश्चित हुआ। डॉ. सिंह की अधिकार-आधारित क्रांति ने भारतीय राजनीति में एक नए युग की शुरुआत की, जो समाज के प्रत्येक वर्ग को समान अवसर का संकल्प था। प्रधानमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल में समृद्धि और विकास की कहानी लिखी गई।
भारतीय राजनीति में सादगी, कर्मठता, ईमानदारी एवं राजनीतिक कौशल से अपनी जगह बनाने एवं निरन्तर चमत्कार घटित करने वाले डॉ. सिंह अपनी प्रभावी एवं शालीन भूमिका से देश की आर्थिक मजबूती की एक बड़ी उम्मीद बने थे। मन बार-बार उनकी तड़प को प्रणाम करता है।