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उनकी मेहनत की निशानी

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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मेरे पिता जी की साईकल स्पर्धा विशेष…..

देखो मित्र,यह मेरे पिताजी की साइकिल पुरानी है,
पिताजी की साईकल,उनकी मेहनत की निशानी है।

साईकल से परिवार का पालन-पोषण करते थे पिता,
हर क्षण उनके कंधे पर परिवारों की रहती थी चिन्ता।

साईकल से ही पढ़ने जाते,और ज्ञान-विज्ञान मिला,
अनेक कष्ट झेलते रहे,नहीं मिटा कष्ट का सिलसिला।

मेरे पिताजी की साईकल से हम भाई-बहन पढ़ने जाते,
साईकल से सुबह स्कूल ले जाते,और शाम को लाते।

मेरे पिताजी हमेशा साईकल की सवारी किया करते थे,
खलिहानों से धान-गेहूँ साईकल पर ही लाया करते थे।

जब आती दुर्गा पूजा,साईकल पर मेले ले जाते थे,
मेरे पिताजी साईकल सुन्दर-सी सजाकर रखते थे।

याद है बचपन की बातें साईकल चलाना सिखाया था,
सड़क की बायीं ओर चलना,उन्होंने मुझे बताया था।

सच्ची लगन से मेहनत करते,साईकल से ही जाते थे,
माँ को भी साइकिल पर बिठा के अस्पताल ले जाते थे।

आज भी सहेज रखी है पिताजी की मैंने वो साईकल,
जैसे पहले-पहल घर आई थी पिता जी की साईकल॥

परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।

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