कुल पृष्ठ दर्शन : 248

उफ्! ‘खुले में शौच से मुक्ति’ अभियान का जानलेवा मोड़…

अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश) 

******************************************************************

देश को खुले में शौच से मुक्त कराने का एक अच्छा अभियान ऐसा हिंसक मोड़ ले लेगा,शायद ही किसी ने सोचा हो। मध्यप्रदेश में इसी वजह से ३ लोग जानें गवां चुके हैं तो अब मनुष्य के साथ पशुओं के(खुले में)शौच को लेकर भी हिंसा शुरू हो गई है। शायद यही वजह है ‍कि,प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ५ साल पहले जिस आत्मविश्वास के साथ एक शुचितापूर्ण मुहिम का ऐलान किया था,उस अभियान की पूर्णाहुति के ऐलान के वक्त उनके चेहरे वो चमक नहीं थी,जो अपेक्षित थी। जो ऐलान हुआ,वह आँकड़ों की बाजीगरी ज्यादा थी,बजाए एक व्यापक अभियान की ठोस और निर्विवाद सफलता के। दुर्भाग्य है कि पर्यावरण और सामाजिक शुचिता के लिए छेड़ा गया आंदोलन अब इंसा‍नियत को कलंकित करने लगा है। जो खबरें आ रही हैं,वो वाकई विचलित करने वाली हैं। व्यथित करने वाली ये घटनाएं भी उस मौके पर जोर पकड़ रही हैं,जब पूरे देश को ‘खुले में शौच से मुक्त’ करने का दावा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किया जा रहा है। बापू की डेढ़ सौ वीं जयंती के हफ्‍ते पहले एक खबर शिवपुरी जिले से आई कि वहां पंचायत भवन के सामने खुले में शौच कर रहे २ दलित बच्चों की निर्मम हत्या कर दी गई। उन बच्चों की मजबूरी पर किसी ने गौर नहीं किया कि पंचायत भवन के सामने शौच करने के पीछे उनकी क्या मजबूरी थी ? वहां जो घटा,उसके पीछे जातिय घृणा तो थी ही,साथ में खुले में शौच करने पर बच्चों को तगड़ा सबक सिखाने की दबंगई भी थी। इस घटना की सिहरन कम हुई भी न थी कि ठीक गांधी जयंती के दिन ही सागर जिले में आदिवासी बच्चे की पड़ोसी के घर के सामने शौच करने पर दिनहाड़े हत्या कर दी गई। मानो इतना ही काफी न था। एक और खबर अब यूपी के मुजफ्फरपुर से आई है कि वहां कुत्ते को शौच कराने को लेकर नेता के पुत्र की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। इस हिंसक घटना में मृतक के माता-पिता सहित ३ लोग घायल भी हुए हैं। बेशक खुले में शौच आधुनिक युग में किसी भी देश या समाज के लिए शर्म का विषय है। पांच साल पहले तक दुनिया में सबसे ज्यादा लोग भारत में खुले में शौच कर रहे थे। विश्व में कुल आबादी का १२ फीसदी यानी ८९ करोड़ लोग खुले में शौच पर मजबूर थे,तो भारत में यही संख्‍या कुल आबादी का ३९.८४ फीसदी यानी ५२.४ करोड़ थी। इसके पीछे कई कारण हैं। एक तो शौचालयों का अभाव,हैं तो उनकी उपयोगिता पर सवाल,अभी भी घर से बाहर कहीं शौच कर्म करने की पारम्परिक सोच तथा घर में शौचालय बनवाने की हैसियत न होना आदि। हालांकि,मोदी सरकार का दावा है कि देश में बड़े पैमाने पर चलाए गए स्वच्छता भारत मिशन के परिणामस्वरूप देश(सरकारी अभिलेख में)खुले में शौच से पूरी तरह मुक्त हो गया है। काश,ये सच होता,क्योंकि ऐसा होता तो खुले में शौच मुक्ति अभियान की परिणिति इस तरह जानलेवा तरीके से सामने न आती। यहां तर्क दिया जा सकता है कि इन ३ मामलों में जो हुआ,उसके पीछे कई दूसरे कारण भी हैं,उसे खुले में शौच अभियान की विफलता के रूप में देखना गलत होगा,क्योंकि यह अभियान एक पवित्र उद्देश्य और स्वच्छता के व्यापक आग्रह के साथ शुरू किया गया था। लोगों को नित्य कर्म के लिए शौचालय में जाने के लिए प्रेरित करने और वातावरण को गंदगी मुक्त करने के मकसद से आरंभ किया गया था। ये तर्क अपनी जगह सही हैं,लेकिन इसी अभियान का नकारात्मक कोण यह है कि लोग अब ‘खुले में शौच’ के मामलों में लोटा छोड़कर लट्ठ हाथ में लेने लगे हैं। इसे क्या कहें ? वैसे भारत में खुले में शौच की परम्परा बहुत पुरानी है। हिंदी में इसे एक सभ्य शब्द ‘दिशा मैदान’ दिया गया है। प्राचीन समय में घर में शौचालय या स्नानागार बनाने का रिवाज नहीं था। इन्हें विलासिता की वस्तु समझा जाता था और ये सुविधा राजा-महाराजाओं अथवा रईसों के यहां ही होती थी। अमूमन लोग शौच करने बाहर जंगल,मैदान,खेत अथवा नदी किनारे जाते थे। स्नान सार्वजनिक अथवा निजी कुओं पर किया जाता था। लज्जा के कारण महिलाओं को यह काम मुँह अंधेरे ही निपटाना पड़ता था। शौच कर्म शुचिता से जुड़ा था,लेकिन यह काम घर में वर्जित था। जब तक गांव,शहर छोटे थे,तब तक लोग इसी तरह ‘दिशा मैदान’ जाते रहे,पर शहरों के विस्तार और खुली अथवा आड़ की जगह घटते जाने से खुले में शौच जाना कठिन होने लगा। उसके लिए घर में ही एक अलग स्थान नियत करना जरूरी हो गया और इसी के साथ टायलेट विचार आया। हालांकि,तब भी शौचालय साफ करना नीच काम माना जाता था। विडंबना यह है कि जो काम शारीरिक और मानसिक शुचिता से जुड़ा है,वही हमारे समाज में सबसे अस्वच्छ और तिरस्कार योग्य माना गया। अस्वच्छता के प्रति घृणाभाव में सामाजिक घृणा भी शामिल हो गई। यह ऐसा सामाजिक विकार है,जिसे स्वच्छता अभियान भी साफ नहीं कर सका है। सरकार ने शौचालय तो बना दिए,लेकिन मन की सफाई कैसे होगी ? इसे कौन करेगा ? इस मायने में भारत दुनिया में अकेला देश होगा,जहां खुले में शौच करना या ऐसा करने से रोकना भी मनुष्य की हत्या का कारण हो सकता है। इन हिंसक घटनाओं के बाद पुलिस अपनी कार्रवाई कर रही है। शायद दोषियों को कानून सजा भी दे,लेकिन हमारा समाज इससे कितना विचलित है ? यहां बुनियादी सवाल यह भी है कि क्या खुले में शौच करना या उसे रोकना मनुष्य की जान लेने की वजह हो सकता है ? क्या खुले में शौच का मामला एक नए सामाजिक टकराव का कारण बनता जा रहा है ? क्या हम एक अच्छे आंदोलन को भी एक नकारात्मक मोड़ देने के लिए अभिशप्त हैं ? और यह भी कि क्या खुले में शौच से मुक्ति का रिकार्ड समाज की मानसिक शुचिता कराने में नाकाम रहा है ?

#विशेष-वैदिक जीवन पद्धति में धर्म का पांचवां लक्षण शौच को माना जाता है, प्राचीन धर्म ग्रन्थों में भी इस बात की पुष्टि की गई है कि शौच मानव धर्म है और मानव को इस धर्म का पालन शुद्धता व पवित्रता को ध्यान में रखकर करना ही उत्तम होगा।

Leave a Reply