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एक गुजारिश है…

संजय एम. वासनिक
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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नया उजाला-नए सपने…

हे जाते हुए साल के दिसंबर!
एक गुजारिश है तुझसे,
वैसे मांगने की कोई जरुरत नहीं
पर मेरी इंसानी फितरत ही है…
किसी ना किसी से कुछ ना कुछ,
मांगते ही रहने की
माता से, पिता से, भाईयों से,
बहनों से, दोस्तों से, गुरूजनों से
अनाकलनीय शक्तियों से,
भगवान से, ईश्वर से, अल्लाह से…
परमपिता से और न जाने किस-किससे,
लेकिन आज बहुत कुछ…
मांग नहीं रहा हूँ मैं तुझसे…।

जाते-जाते खुशियों का नया साल दे…,
‘कोरोना’ की महामारी से मुक्ति दे…
मेरे देश के लोगों को को यक़ीन दे,
मेरे देश के सैनिकों को भरोसा दे…
इस धरती के किसानों को दे हौंसला,
ना ले कोई ज़िंदगी का गलत फैसला…
भूखों को खाना मिले,
बेघरों को मिले आसरा…
अनाथों को नाथ मिले,
लावारिसों को वारिस…
ख़ाली हाथों को काम मिले,
मेहनत का सही दाम मिले…
अनाज इतना पैदा हो कि,
ना रहे कोई भूखा यहां पर…
इतनी फसलें पैदा करने की,
शक्ति मेरे किसानों को दे…
जात-धर्म का भेद मिटाकर,
स्त्री-पुरुष को समान न्याय दे…।

राजनेताओं को लालच से मिले छुटकारा,
देश की अवाम और देश हो उनको प्यारा…
भूल जाएं वो पार्टियों का बँटवारा,
जनता और देश के विकास का हो नारा…
सबको मिले शांति और अमन,
खुशियों से भर दे सबका दामन…
बाँट सके हर कोई खुशियाँ,
कि कोई ना रहे गमगीन यहां…
छोटी-सी ज़िंदगी मिली है हर किसी को,
हर बात में खुश रहे, खुशियाँ मिले सबको…।

कोई अपना किसी के पास ना हो,
उसकी आवाज से ही खुश रहे वो…
गर कोई रुठकर चला गया हो किसी से,
वो बना रहे सलामत यादों में उसी की…
बस यही कामना करता हूँ तुझसे,
देश मेरा सुजलाम रहे…
देश मेरा सुफलाम रहे,
हे जाते हुए साल के दिसंबर।
यही गुजारिश है तुझसे…,
यही गुजारिश है तुझसे…॥

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