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एक पत्थर में रूप

संदीप धीमान 
चमोली (उत्तराखंड)
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एक पत्थर में भी रूप तेरा मिल जाता है,
अदृश्य है तू, अक्सर यही कहा जाता है।

मंत्र पढ़ते हैं अक्सर खुश करने को तुझे,
सुना है मालिक को मौन बहुत भाता है।

पढता हूँ वेद, पुराण पाने को तेरा ज्ञान,
पर न जाने क्यों अज्ञान से तेरा नाता है।

पुण्य तेरा, पाप तेरा, हर कर्म आधार तेरा,
सुना है पास तेरे कर्मों लेखा जाता है।

अविरल होकर भी अवरुद्ध तू समुद्र-सा,
अक्सर मार्ग तेरे, दोहराए बहुत पाता हूँ॥

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