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ओ पथिक

ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
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ओ पथिक,
तू क्यों उदास है ?
ये जीवन तो,
सबके लिए खास है।

क्या है तेरे मन में,
ये तो मुझे पता नहीं…
पर इतना समझ ले,
तुझसे ही तेरे जीवन में,
खुशियाँ और उजास है।
ओ पथिक…

तू है तो सब कुछ है,
तूझसे ही परिवार खुश है
भूल गया गर जिम्मेदारी तो,
ना तू खुश है-ना परिवार खुश है
तू उठ, लक्ष्य की ओर बढ़,
तेरा लक्ष्य ही तेरा प्रकाश है।
ओ पथिक…

चींटी भी दाना चुनकर,
दीवारों पर चढ़ जाती है
मन्जिल मिले न मिले वो,
जिम्मेदारी खूब निभाती है
तेरा मार्ग प्रशस्त कराती है,
तू सम्भल नादान न बन
वरना,निश्चित तेरा विनाश है।
ओ पथिक…

कर्तव्य पथ पर आगे बढ़,
जनहित में तू ध्यान लगा
दुर्लभ जन्म मिला है तुझको,
भरपूर इसका लाभ उठा
ऐ पथिक तू नेक कर्म कर,
इसी में तेरा कल्याण है।
ओ पथिक…

चिड़िया भी तिनका चुनकर,
घर अपना बनाती है
अपने बच्चों की खातिर,
सारा जीवन यूँ ही लुटाती है
सबको कुछ न कुछ सिखाती है।
यही जीवन का आधार है,
और यही मेरा विश्वास है।
ओ पथिक…॥

परिचय- ताराचंद वर्मा का निवास अलवर (राजस्थान) में है। साहित्यिक क्षेत्र में ‘डाबला’ उपनाम से प्रसिद्ध श्री वर्मा पेशे से शिक्षक हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,कविताएं एवं आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आप सतत लेखन में सक्रिय हैं।

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