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बहाते तुम नदी क्यों खून की!

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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हृदय विष नाग का भर क्यों मचाते रार दंगा हो,
बहाते तुम नदी क्यों खून की,करते क्यूँ पंगा हो।

ये धरती ज्ञान गीता की,संत ध्यानी राम गाते हैं,
मिटाते प्यास तुम भी तो हरि पग धार गंगा हो।

जलन-ईर्ष्या भरे पत्थर उछाले लोगों के सिर पर,
बुझाने ज्ञान की ज्वाला,चले जाहिल पतंगा हो।

लड़ाई कर अलग हो देश तेरा कौम बंटवाया,
दुखी बन कर रुके थे,अब बने मुस्टंड चंगा हो।

यहाँ के गर नहीं तो रुके क्यों हो,चले जाओ,
सुनो भारत की प्रगति पर लगाते क्यों अड़ंगा हो।

नहीं आपत्ति मेरे राम को,सुन राम पर तेरे,
बता क्यों राम फेरी पर,दिखाया नाच नंगा हो।

न जीने दे रहे चैन से,न जी रहे हो तुम,
ऐसा ही राम ने तेरा कहा,क्या कैसे बंदा हो।

हमेशा ही अमन का नाम ले कलह मचाते हो,
रचा कर रंग परदेशी लगे सियार रंगा हो।

भरा है राम का ही अंश,धर्म अभी बदले हो
दिखा तलवार अपनों को,करे क्यों काम गंदा हो॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

 

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