कुल पृष्ठ दर्शन : 36

You are currently viewing कब आओगे नन्दलाल ?

कब आओगे नन्दलाल ?

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
************************************

कृष्ण जन्माष्टमी विशेष…

फिर वही भयानक रात, कंस के महल में सन्नाटा पसरा हुआ था। सभी निंद्रा के आगोश में थे। देवकीनंदन फिर उसी अंधेरी रात में आने वाले हैं। १२ बजे मथुरा में जेल के ताले अपने-आप खुलने वाले हैं। बालगोविंद कृष्ण कन्हैया लाल अपने छोटे-छोटे पाँव से यमुना मईया को आशीष देने वाले हैं। लगता है कि आज फिर चरणों की रज का प्रसाद बंटने वाला है, क्योंकि आज जन्म अष्टमी है। कृष्ण कन्हैया नन्दलाल, हमारे बाल गोपाल आने वाले हैं। तभी तो काली घटाएं छाई हुई है। बरसात भी अपने वेग से बरस रही है। वह भी कन्हैया को जल्दी बुला रही है। सब भाव-विभोर हैं, ख़ुशी से झूम रहे हैं, क्योंकि हमारे प्रभु आने वाले हैं, पर भगवान इस जीवन लीला से आपकी रासलीला अच्छी थी। मनुष्य को आपने सब कुछ दिया, हर एक सांचे में ढाला, पर उसके अंदर का कंस अभी भी नहीं मरा है। बार-बार दानव बाहर आ रहे हैं। त्रिलोकीनाथ चक्रधारी बिट्ठल बाल गोपाल क्यों यहाँ भगदड़ मची हुई है बुराईयों के लिए ? आपने अपने कंस मामा को उनके पाप कर्म की सजा दी थी, फिर इन दरिंदों-दानव-राक्षसों को कब सज़ा दोगे ? बोलो ना। आज मानवीय सरोकार व उनके मूल्य धराशाई हैं। गीता के सार को पढ़ने पर भी मनुष्य आज अन्धेरे में अपने पतन को जारी क्यों रखे हुए है ? इससे उनके ही कर्म खराब होते जा रहे हैं। अनगिनत द्रौपदी अपनी लाज बचाने की गुहार लगा रही हैं, उनकी पुकार कब सुनोगे कृष्णा! बड़े-बुजुर्गों से हम सुना करते थे कि बुरे काम का नतीजा बुरा ही होता है। सच्चाई का बोल बाला होता है, झूठे का मुँह काला होता है। आज वर्तमान युग में तो झूठ, पाप, फरेब, चोरी, लूट, हत्या, डाका, बलात्कार बढ़ रहे हैं, तभी तो रिश्तों की मर्यादा भी खण्डित हो रही है। फिर कब आओगे नन्दलाल ? मोहन मुरली की धुन कब सुनाओगे ? क्या तुम रास नहीं रचाओगे या फिर सुदर्शन चक्र उठाओगे ? मोहन आपने तो दोस्ती का फ़र्ज़ भी अदा किया था। सुदामा के स्नेह व वात्सल्य भाव को उस प्रेम-सौहार्द को आपने गले लगा कर दूरियाँ कम कर दी थी। फिर मनुष्य आपके इन गुणों को क्यों नहीं अपनाता है ? बार-बार दोस्तों की पीठ पर खंजर घोंपता है। दोस्ती क्या होती है, वह क्यों नहीं जान पाता है। सिर्फ मतलब, अपने स्वार्थ व लालच का पिटारा खोलने से दोस्त केसे भरोसा करेगा ? यही किस्से वर्तमान समय के होते जा रहे हैं, तभी तो रिश्तों के अटूट बंधन भी दागदार हो रहे हैं। ऐसे में राजा महाराजा द्वारकाधीश फिर कब आप अपने महल के दरवाजे पर खड़े होकर बाल सखा सुदामा को गले लगाओगे, कब आओगे नन्दलाल ?
पूरी दुनिया में युद्ध की पटकथा लिखी जा रही है। हिंसा की इस महाभारत में अपने-आपमें खफा व बर्बाद हो रही है। ऐसे समय जब अन्धकार छाया हुआ है, कोई हल नहीं है, तो फिर हमारे आराध्य वासुदेव कृष्ण धर्म युद्ध में किसके सारथी बन कर इस महाभारत में किसका साथ देंगे ? यह सोचना हमें है। कर्महीन भाव मन में हो तो नकारात्मक विचार का विस्तार होता ही है। तभी तो वर्तमान समय में आतंक, मार-काट और हिंसा की बड़ी-बड़ी घटनाएं दुनिया में बढ़ रही है, युद्ध भूमि तैयार हो रही है। एक-दूसरे के प्रति मनुष्य का नज़रिया बदल गया है। जिस भूमि को आपने सुरक्षित कर इंसानों को दी थी, उसी भूमि पर आज ना जाने क्या क्या हो रहा है ? अब तो ना कर्ण है, ना अर्जुन, फिर सभी चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं। शिक्षा के मंदिर पाठशालाओं में भौतिकता का नक़ाब लगा हुआ है। धोखे के साथ-साथ धन भी महिमा मंडित हो रहा है। अब अपनी संस्कृति, परम्परा, संस्कार, वैदिक शिक्षा पद्धति का शून्य आ गया है। क्या मेरे गोपाल अब भी नहीं आओगे! क्या अब संवाद व सीख का गुणानुवाद नहीं होगा भगवान ? क्या गांडीवधारी अर्जुन अपने कृष्ण से गीता का सार नहीं सुनेंगे ? कब तक हम अपनी आँखों में पट्टी बांध कर सच, अहिंसा, भाईचारे, मानवीय सरोकार और रिश्तों के बंधनों से दूर रहेंगे। सच्चाई व सच की लड़ाई जो कुरुक्षेत्र में लड़ी गई थी, उस प्रसंग-संस्मरण को हम क्यों भूल रहे हैं, उसे मिटाने का प्रयत्न कर रहे हैं ?
फिर क्यों नहीं अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर धर्मयुद्ध की शुरुआत हम करते! अगर हम पूरी श्रद्धा व भक्ति भाव एवं निस्वार्थ सेवा से अपने भगवान वासुदेव कृष्ण को बुलाएंगे तो वह जरूर हमारा हाथ पकड़ जीवन की उलझनों व मझधार में घिरी हमारी नाव को किनारा लगाएंगे। फिर वह पांचजन्य शंख लिए शंखनाद करने जरूर आएंगे। सुदर्शन चक्रधारी विराट स्वरूप दिखाएंगे, धर्म की रक्षा के लिए मनुष्यों को सही राह दिखाने के लिए नन्दलाल जरूर आएंगे।