आचार्य गोपाल जी ‘आजाद अकेला बरबीघा वाले’
शेखपुरा(बिहार)
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तुम भी मेरी जां कमाल करती हो,
मेरे ख्यालों में भी बवाल करती हो।
बिना मिले ही मुझसे कभी-कभी,
जाने कैसे-कैसे सवाल करती हो।
जागते हुए भी सोया रहता हूंँ मैं,
तुम ख्वाबों में भी बेहाल करती हो।
तेरी खुशी के लिए मैं मुस्कुराता हूंँ,
तुम खुशी में भी चेहरा लाल करती हो।
हर रोज नए नुस्खे मुझ पर ही,
तुम तो सदा इस्तेमाल करती हो।
मैं तो अकेला मस्त मलंग था मगर,
बांध कर बंधनों में आजाद करती हो।
तेरी अदा भी अजीब निराली है जाना,
दिल मिला कर तुम आँखों से आड़ करती हो।
हरकतें हमेशा तुम अजीब करती हो,
कभी मुझे या गैर को खुशनसीब करती हो॥