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तालमेल

मधु मिश्रा
नुआपाड़ा(ओडिशा)
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“दादी माँ…देखिए,आज गरबे के लिए मेरा लहंगा कैसा लग रहा है…? पता है दादी माँ,मेरा ये लहंगा न मम्मी ने ख़ास गुजरात से मंगवाया था..!” अपने पूरे लंहगे का लुक दिखाते हुए चहक कर मेघा पूरा गोल घूम गई।
“अरे वाह,ये तो बहुत सुन्दर लग रहा है,और तुम भी तो प्यारी लग रही हो…पूरी गुड़िया की तरह…! “भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए दादी माँ ने अपने पोते की बहू की बलैयाँ ले लीं।
मुस्कुराती हुई मेघा ने दादी सास की तरफ़ देखा और अब वो वहीं कमरे के ड्रेसिंग टेबल के पास जाकर अपने होंठों को मिलाते हुए अपनी लिपस्टिक देखने लगी…।
तभी दादी माँ ने कहा-“गरबा रास में जाते हुए कितने दिन हुए बेटा..?”
“पाँच दिन…दादी माँ..!”.. कहते हुए अब वो अपने चेहरे को आईने में घुमा-घुमा कर देखने लगी…।
“वापस आने में बहुत देर हो जाती है न…!” दादी ने पूछा
“हाँ दादी माँ, एक-दो तो बज ही जाती है…और घर पहुँचकर सोते-सोते तीन..चार… बहुत थकान लगती है, इसलिए उठने में भी लेट हो जाता है…।
“अच्छा बेटा,एक बात बताओ…गरबा क्यों करते हैं…?”
“ह्म्म्म्म… देवी माँ को प्रसन्न करने के लिए… इसे माँ दुर्गे की आराधना भी कह सकते हैं..!” बेबाकी से मेघा ने कहा…
“अच्छा ये बताओ… अगर गरबे के बीच कोई ग़लत डांडिया चलाने लगे तो…?”
“उस एक की वज़ह से सारे लोगों की ताल बिगड़ जाएगी दादी माँ…आप भी…!”अपना मुँह बिगाड़ते हुए मेघा ने कहा..
“ठीक… कहा तुमने,जानती हो बेटा…ये डांडिया की तरह ही हमारे रिश्ते भी होते हैं…जिस तरह सुन्दर लय और ताल से चलता हुआ डांडिया नृत्य ख़ूबसूरत लगता है न… उसी तरह हमारे आपसी तालमेल से रिश्ते भी सुन्दर लगते हैं..! वैसे तो तुम्हारे ब्याह को तीन-चार महीने ही हुए हैं.. इसलिए आपसी रिश्तों का मर्म भी तुम्हें धीरे-धीरे ही समझ में आएगा। तुम्हारी सास तो कभी कुछ कहती नहीं…,पर आजकल उसकी तबियत थोड़ी ठीक नहीं रहती….!” कहते हुए दादी माँ थोड़ा चुप हो गईं…फ़िर उन्होंने कहा …”एक बात कहूँ बेटा,रिश्तों की मजबूती बनाए रखने के लिए कोई कुछ कहे…ये इंतज़ार करना…” दादी माँ की बात पूरी भी न हो पाई थी कि,अखिल (मेघा का पति) मेघा को बुलाने लगा…।
“मेघा…! मेघा…चलो भई,तुमको दुर्गा पंडाल में छोड़ने के बाद मुझे थोड़ा मार्केट में भी जाना है…!”
“आप कुछ कह रहीं थीं दादी माँ बोलिए न…!” मेघा ने उत्सुकता से कहा..।
“जा…जा…फ़िर कभी…कह दूँगी…मैं कौन-सा कहाँ चली जा रही हूँ..।” दादी माँ ने मुस्कुराते हुए कहा..।
“अच्छा ठीक है दादी माँ,चलती हूँ” और पास खड़ी सासू माँ से भी…”चलती हूँ मम्मी जी…!” कहते हुए वो घर से निकल गई…
कुछ देर में ही गरबा शुरू हो गया…,पर आज एक-दो राउंड के बाद ही उसे मम्मी जी का चेहरा नज़र आने लगा…और अब मेघा ख़ुद से ही सवाल-जवाब करने लगी.. “हाँ…मम्मी जी की तबियत कुछ दिनों से थोड़ी ख़राब तो लग रही है…लेकिन उन्होंने मुझे यहाँ आने के लिए कभी मना नहीं किया…इसलिए शायद मेरा भी ध्यान नहीं गया…ओह…अगर दादी माँ मुझसे न कहतीं तो… !! बड़े-बुज़ुर्ग हमारे लिए कितने ज़रूरी हैं न…और तभी गरबे का गीत बदला और डांडिया का स्टेप भी चेंज हो गया…पर मेघा अपनी बातों में उलझी अनमनी-सी पहली ही धुन के साथ डांडिया घुमा रही थी,तभी उसके आगे और पीछे वाली दोनों ही लड़कियों ने टोकते हुए कहा-
“क्या हुआ भाभी जी,आज आपका ध्यान किधर है…? आप थोड़ी देर बैठ जाइए न… इस तरह से तो डांडिया बिगड़ जाएगा…”
ये सुनते ही मेघा की तन्द्रा भंग हुई..और अब वो बेसुध-सी घेरे से बाहर निकल कर पास ही खड़े अपने पति से बोली-
“अखिल,घर चलें..!”
“कैसे…? आज इतनी जल्दी…तुम्हारी तबियत तो ठीक है न .. !” आश्चर्य भरी नज़रों से मेघा की तरफ देखते हुए अखिल ने कहा…।
“ह्म्म…मैं ठीक हूँ…अब घर चलें।” कहकर हड़बड़ाते हुए मेघा गाड़ी के क़रीब जाकर खड़ी हो गई…।
घर पहुँचने पर उसने देखा,मम्मी जी अपने माथे पर शायद बाम लगा रहीं थीं… मेघा उनसे कुछ कहती उसके पूर्व ही मम्मी जी ने मेघा को देखते ही कहा-“अरे,मेघा आज जल्दी आ गए बेटा…चलो मुँह-हाथ धो कर…खाना खा लो…!”
“हाँ… मम्मी…पर आपको कैसा लग रहा है…?”
-“ठीक हूँ बेटा…बस थोड़ा सिर दर्द हो रहा है…!”
-“लाइए मैं बाम लगा देती हूँ…।” कहकर मेघा ने वहीं पास रखा बाम उठाया और सासू माँ के माथे पर मलते हुए बोली-
“मम्मी जी आपने खाया…! दादी माँ..! पापा जी ?”
-“हम सबने खा लिया बेटा…अब जाओ तुम लोग भी खा लो… तुम्हारे हाथो से बाम तो जादू जैसा लगा…अब पहले से थोड़ा ठीक लगा मुझे… अब जाओ… ज़ल्दी से फ़्रेश हो लो…!”
-” ठीक है मम्मी,आप आराम करिए…!” कहते हुए मेघा ने कमरे की लाइट बंद करके दरवाज़ा बंद किया,और अपने कमरे में चली गई।
दूसरे दिन सुबह सुबह जब दादी माँ उठी और उन्होंने मेघा को रसोई में देखा तो मन ही मन मुस्कुराते हुए सोचने लगी -लगता है मेघा कल रात गरबे से ज़ल्दी ही लौट आई… और अब वो मुस्कुराते हुए धीरे-धीरे मेघा के पास रसोई में पहुँची। फिर आशीर्वाद देते हुए बोलीं-“जब इंसान रिश्तों में मधुरता चाहता हो न,तो उसे अधूरी बात का भी आशय समझने में देर कहाँ लगती है..सदा ख़ुश रहो बेटा…।”

परिचय-श्रीमती मधु मिश्रा का बसेरा ओडिशा के जिला नुआपाड़ा स्थित कोमना में स्थाई रुप से है। जन्म १२ मई १९६६ को रायपुर(छत्तीसगढ़) में हुआ है। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती मिश्रा ने एम.ए. (समाज शास्त्र-प्रावीण्य सूची में प्रथम)एवं एम.फ़िल.(समाज शास्त्र)की शिक्षा पाई है। कार्य क्षेत्र में गृहिणी हैं। इनकी लेखन विधा-कहानी, कविता,हाइकु व आलेख है। अमेरिका सहित भारत के कई दैनिक समाचार पत्रों में कहानी,लघुकथा व लेखों का २००१ से सतत् प्रकाशन जारी है। लघुकथा संग्रह में भी आपकी लघु कथा शामिल है, तो वेब जाल पर भी प्रकाशित हैं। अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में विमल स्मृति सम्मान(तृतीय स्थान)प्राप्त श्रीमती मधु मिश्रा की रचनाएँ साझा काव्य संकलन-अभ्युदय,भाव स्पंदन एवं साझा उपन्यास-बरनाली और लघुकथा संग्रह-लघुकथा संगम में आई हैं। इनकी उपलब्धि-श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान,भाव भूषण,वीणापाणि सम्मान तथा मार्तंड सम्मान मिलना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-अपने भावों को आकार देना है।पसन्दीदा लेखक-कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद,महादेवी वर्मा हैं तो प्रेरणापुंज-सदैव परिवार का प्रोत्साहन रहा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी मेरी मातृभाषा है,और मुझे लगता है कि मैं हिन्दी में सहजता से अपने भाव व्यक्त कर सकती हूँ,जबकि भारत को हिन्दुस्तान भी कहा जाता है,तो आवश्यकता है कि अधिकांश लोग हिन्दी में अपने भाव व्यक्त करें। अपने देश पर हमें गर्व होना चाहिए।”

 

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