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करें विसर्जन

संदीप धीमान 
चमोली (उत्तराखंड)
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सृजनकर्ता का करें सर्जन
वासना का करें विसर्जन,
प्राण-प्रतिष्ठा कर मूरत की
सर्जनकर्ता करें विसर्जन।

भिक्षु मांग रहा भिक्षा दर भिक्षु के
कि ‘मैं भिक्षुक’ यह घोषणा कर भिक्षु से,
यहां परिस्थितियों, स्थितियोंवश भिक्षु है
स्वयं सृजन करें यहां कौन वर भिक्षु के!

सम्राट होगा बुद्ध-सा कोई
विराट होगा शुद्ध-सा कोई,
तर्पण, सृजन सब स्वयं का यहां
दर्शन करें स्वयं का कोई!

सृजन किया मिट्टी गणपत
अर्पण किया स्वयं समर्पण,
मान-अपमान हो गए तर्पण
सर्जनकर्ता जो करे विसर्जन।

है भिक्षुक मैं राजा वहीं
सम्राट छिपा विराट कहीं,
लंका स्वर्ण बनवाने वाला कहे
लगा अग्नि रुद्रावतार सही।
सृजनकर्ता का करें सृजन,
सृजनकर्ता करें विसर्जन॥

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