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कल्याणी का दर्द

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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सच कहती हूँ मैं,आत्मा काँप जाती है,आँखें भर जाती है,जब उनके विषय में चर्चा सुनती हूँ। क्या विचार,व्यवहार है उस कल्याणी (विधवा) नारी के प्रति।

मित्रों छोटी-सी बिटिया,नहीं जानती है कल उसके संग क्या होने वाला है,क्या सुनने वाली है। बिटिया बड़ी हो गई,धूमधाम से ब्याह  रचाया गया और दिल खोलकर पिता ने दान-दहेज दिया। बहू को ससुराल में बहुत ही अच्छी मान्यता मिली,और बिटिया की गोद में एक बालक भी आ गया,पर दुर्भाग्यवश दुर्घटना में उसके पति की मौत हो गई और अब वह परिवार में कल्याणी (विधवा) कहलाने लग गई। ऐसे में छूट गया साज-सिंगार एवं सूनी हो गई मांग.. पैरों की महावर पति लेकर चले गए।

    कितना दुखी जीवन है कल्याणी का,कभी दिल खोलकर बच्चे के संग हँसती है,तो सभी कहते हैं-देखो कितनी खुश है। ऐसे में वह चुप हो जाती है और मन ही मन रोती है। उसके दु:ख को कोई भुला नहीं सकता। ऐसी नारी के लिए हर तरह का सिंगार जरूरी नहीं है,विधवा के लिए हर चीज जरूरी नहीं है,सभी का प्यार जरूरी नहीं है। यदि सभी का प्यार मिलता भी है,तो वह प्यार,वह शब्द नहीं,जो पति के मुख से सुनती थी। पति के संग रात-दिन जीवन व्यतीत करना भी कोई जिंदगी नहीं है,उसकी भी जरूरत नहीं है नारी को। चाहे सुहागन हो,चाहे कल्याणी हो,उसके लिए पति की मधुर बोली,मीठा व्यवहार,पति का प्यार ही बहुत है। पति के स्पर्श से ही सारा सुख मिल जाता है। सबसे बड़ी बात यह है जब पति कहते हैं-‘चिंता मत करो हम हैं ना।’

जिसके साथ उसका पति होता है,वह पति के संग भूखी भी रह लेगी,झोपड़ी में भी रह लेगी,और बहुत खुश रहेगी।

एक कल्याणी कितना दु:ख सहती है। यदि पर पुरुष को आसरे की नजरों से देखती है, तो भी बदनाम और यदि उसके साथ कहीं गई तो भी बदनाम!

क्या है ये जीवन,क्यों बनाया उसे विधाता ने ऐसा। क्यों छीन लिया उसका पति,उसका प्यार,क्यों अकेला कर दिया,सोचोंगे तो  आँखों से आँसू रुकेंगे नहीं।

मायके से ससुराल तक सभी चाहने वाले,मानने वाले,प्यार करने वाले,ऊँचा दर्जा देने वाले,उसे धन-दौलत से भर देंगे,लेकिन वह राज कहाँ,वह सुख कहाँ,जो पति की बाँहों में मिलता है।

 जितनी बार,आँखों की पलकें झपकती है,उतनी बार वह पति के लिए रोती है। एक कल्याणी का दर्द दूसरी कल्याणी ही जानती है,या फिर भगवान। समाज को भी चाहिए कि,इनके प्रति अपना नजरिया बदले।

परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।

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