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जब से बदरा जल बरसाये

जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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चैतन्य तरुण हो गयी धरा,जब से मेघा जल बरसाये।
कोयल ने राग विरह छोड़ा,मल्हार राग फिर दुहराये॥

धरती मल मैल क्षरण करके,देखो नव यौवन पाया है,
नदियों ने पानी ढो-ढो कर,सागर का मन दहलाया है।
हरियाली है सब हरा-भरा,ऊपर से मेघ दूत छाये,
अवनी की कोख हरी करने,मेघा आये मेघा आये॥

बंजर का मंजर टूट रहा,धरती से अंकुर फूट रहा,
सूखा-सा दूब तना देखो,मनचाहा पानी लूट रहा।
तितली उपवन में डोल रही,नव रंग पंखुरी फैलाये,
कलियाँ मदमस्त नाचती है,भँवरों ने गीत नए गाये॥

क्रोधित होकर फटते बादल,गुस्सा भी अपना दिखा रहे,
मनमाने प्राकृत दोहन से,मानस को संयम सिखा रहे।
दामिनी ज्यों कड़के अंबर में,घर-बार मवेशी घबराये,
पर्वत चट्टान गिरे झर के,वृक्षों को साथ बहा लाये॥

गिरिराज हिमालय से निकली,निर्झरणी का यौवन देखो,
सागर से मिलने को आतुर,गंगा का तीव्र गमन देखो।
मदमस्त उफनती धारों से,तटबंध किनारे सरमाये,
थर-थर कांपा मिट्टी का घर, ‘हलधर’ भय से चक्कर खाये॥

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