संजय गुप्ता ‘देवेश’
उदयपुर(राजस्थान)
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आबाद रही है जिनकी दुनिया ना तो कभी यह हारी है,
कवि रहता है निडर खड़ा,चाहे सामने ये दुनिया सारी है।
इनके शब्दों की ताकत से धन-बल सारे हार गए हैं,
पानी मांगे सब उसके आगे जब कलम बनी कटारी है।
इनकी ना कोई थाह जाने,पर जब जो इनको समझा है,
नाराज हुआ या मुस्कराया ये कवि की दुनिया न्यारी है।
मस्त-मौला फक्कड़ों की,पर शहंशाह हैं जो बुद्धि से,
गलती पर सबक सिखा कर भटकी दुनिया संवारी है।
कवि की पहुंच से देखो यह रवि भी कितना हैरान हुआ,
इनसे क्या छुप पाया है जिस पे अपनी नजर जो डारी है।
समाज के हर वर्ग की खुशियों-तकलीफों की बात कहे,
किसी को आशा-किसी को डर,अब आने वाली बारी है।
कष्ट दमन सजा से भी इनकी आवाज ज्यादा बुलंद हुई,
साहित्य उन्नति की इनकी सतत यात्रा सदियों से जारी है।
कवि की दुनिया न्यारी सोच देखिए अगर होती ही ना,
ज्ञान गंगा सूख जाती जिसने सबकी दुनिया तारी है।
‘देवेश’ को तो आनन्द आ रहा,बढ़ रहा कवि पथ पर है,
कहें सब देख उसकी दुनिया इसकी तो मति मारी है॥
परिचय–संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।