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काश! आज हम बच्चे होते!

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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है अबोध यह सहज बालपन,
निश्छल निर्मल चित्त मधुर है।
चपल प्रकृति कोमल विमल सरल,
मधुर स्नेह आवृत्त नवल है।

खेलकूद कौतुक हृदय सहज,
भावुक मन उद्गार मधुर है।
मेधावी नित अनुकरण अपर,
कौतूहल आचार प्रखर है।

मनमौज़ी नित बालपन निरत,
लोक नीति अनजान जान है।
गंगाजल पावन प्रकृति मृदुल,
अधर कुसुम मुस्कान शान है।

राग द्वेष मन छल कपट विरत,
नहीं चित्त दुर्भाव चित्त है।
नवकिसलय पादप मृदुल कुसुम,
मुक्त सकल मन घाव वृत्त है।

कुम्भकार घट मृतिका तुल्य
होते नौनिहाल बाल है।
नित अबोध ढल साँच चारुतम,
बाल सुपात्र भविष्य भाल है।

मातु पिता परिवार सुसम्यक,
शिक्षण बाल अबोध कठिन है।
संस्कार सदाचार अनवरत,
सीखें नित नव शोध श्रवण है।

जीवन पथ अनज़ान पथिक वह,
रहे बाल ख़ुशहाल चमन है।
सुखद सुरभि महके पुष्पित मन,
स्नेहाचिंत हो बाल मगन है।

ग्रसित दीनता बाल आज जग,
पतझड़ मुख मुस्कान विरत है।
भूख प्यास छत वसन बिना वह,
दफ़न बाल अरमान जगत है।

अवहेलित नित समाज बाल अब,
दीन हीन मन विपद भाव है।
नीति प्रीति अशिक्षित जीवन,
मिले मजूरी हृदय घाव है।

लखि ‘निकुंज’ दु:ख हृदय बालपन,
कहाँ बाल आनंद दिवस है।
पुनः सजायें बाग बाल हम,
आजाद देश में आज विवश है।

चाचा नेहरू जन्मदिवस पर,
ख्याति प्रथा यह बाल दिवस है।
आओ मिलकर आज वतन हम,
जला दीप जग बाल विभव है।

आज मुदित हम बाल दिवस पर,
हम बच्चे होते काश! चाह है।
निश्छल कोमल अभिनय शीतल,
नटखट निर्मल मुक्त राह है॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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