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कामचोरी

डॉ.शशि सिंघल
दिल्ली(भारत)

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नवम्बर का महीना था। ठंड ने अपने पाँव पसारने शुरू कर दिए थे। अभी कंपकंपाने वाली ठंड नहीं थी,मगर सूरज चाचू मद्धम-मद्धम तेज के साथ चल रहे थे। हल्की-हल्की गुलाबी ठंडक के चलते सूरज से सेंक लेना सुहाने लगा था।
गली-मुहल्ले की महिलाएं अपने-अपने काम से निपटकर घर के बाहर बेड़े में इकट्ठी होने लगी थीं। कोई हरी सब्जी साफ करने में व्यस्त थी तो कोई स्वेटर बुनने के लिए तैयार थी।
“ए माई …कुछ पैसे दे दे,मेरा बच्चा भूखा है। इस छोटे बच्चे पर रहम कर माई। तू एक पैसा देगी,भगवान तुझे हजार पैसा देगा ।” सालभर के बच्चे को गोद में उठाए एक भिखारिन अपने घर से बाहर आती शांति के पीछे लग गयी।
“रिनी,दो रोटी-सब्जी लाकर इसे दे दो।” शांति ने अपनी बेटी को आवाज लगाई।
भिखारिन-“ए माई,कुछ पैसे दे दे।”
शांति-“क्यों,पैसे ही क्यों ? रोटी लेनी है तो ले वरना आगे जा।”
भिखारिन (पीछा न छोड़ते हुए )-“ए माई,दे दे ना पैसे,भगवान तेरा घर खुशियों से भर देगा।”
वहाँ बैठी कोमल भिखारिन से बोली-“जब भगवान ने अच्छे खासे दो हाथ,दो पैर दिए हैं तो कुछ काम-धाम क्यों नहीं करती ? मेहनत की कमाई से जो सुकून मिलता है वो भीख माँगकर गुजारा करने में नहीं। अच्छा चल,बच्चे को यहाँ बैठा दे और ये झाड़ू ले,इस बेड़े की झाड़ू लगा दे। मैं तुझे एक क्या पूरे दस रुपये दूंगी।”
कोमल की बात सुनते ही भिखारिन बड़बड़ाती हुई वहाँ से भाग खड़ी हुई ।
वहाँ बैठी सभी महिलाएं यह नजारा देखकर दंग रह गयीं।
कोमल अपने अनुभव और सुझावों को सबके साथ बाँटते हुए बोली-“भीख में पैसा देकर इनकी आदतें हम लोग ही खराब करते हैं। साथ ही आपराधिक गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं। ये लोग ही दिन में भीख माँगकर रेकी करते हैं और रात को चोरी-चकारी। जब किसी इंसान को बिना हाथ-पैर चलाए,बिना मेहनत के भरपेट खाना मिल जाए तो वह इंसान नकारा व कामचोर बन जाता है। देखा आप सबने,थोड़ी-सी मेहनत करने के लिए क्या बोला कि वो तो‌ नौ दो ग्यारह हो ली।
सही कहते हैं कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। ठीक उसी तरह जिस भी इंसान को बिना मेहनत किए पेटभर रोटी मिल जाए तो वह किसी काम का नहीं रहता है। उसे कामचोरी की आदत पड़ जाती है।”

परिचय-डॉ.शशि सिंघल का जन्म २१ सितम्बर १९६६ को आगरा में हुआ है। वर्तमान में आप स्थाई रुप से नई दिल्ली में रहती हैं। देश कॆ हृदय प्रदेश दिल्ली की वासी और हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली डॉ.सिंघल की पूर्ण शिक्षा पीएचडी है। आपका कार्यक्षेत्र-घर पर ही बच्चों को ट्यूशन पढा़ना है। इससे पहले ४ साल तक कोचिंग सेन्टर चलाया है। कुछ वर्ष अखबार में उप-सम्पादक पद का कार्यभार संभाला है। सामाजिक गतिविधि में क्षेत्रीय कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं। लेखन विधा-लेख (सामाजिक,समसामयिक,सांस्‍कृतिक एवं ज्वलंत विषयों पर)एवं काव्य भी है। काव्य संग्रह में कुछ कविताओं का प्रकाशन हुआ है तो काव्य संग्रह-‘अनुभूतियाँ प्रेम की’ आपके नाम है। करीब २८ वर्षों से विभिन्न राष्ट्रीय पत्र – पत्रिकाओं में आपकी ५०० से ज्यादा रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर लिखने में सक्रिय डॉ.सिंघल की विशेष उपलब्धि-आगरा की पहली महिला होने का सम्मान है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-लोगों को जागरूक करने का भरपूर प्रयास करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक- मुंशी प्रेमचंद हैं,तो प्रेरणापुंज-डॉ.शशि तिवारी हैं। विशेषज्ञता-संस्कृत भाषा का ज्ञान है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिन्दी मेरी मातृभाषा है। हिन्दी के प्रति मेरा विशे़ष लगाव है। सबको मिलकर हिन्दी भाषा की लोकप्रियता के लिए और काम करना चाहिए।”

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