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कभी तुम आओगी…

कुँवर बेचैन सदाबहार
प्रतापगढ़ (राजस्थान)
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‘हमको फरक नहीं पड़ता’ या ‘हमें क्या अधिकार है!’,ये पंक्ति हम दोनों के बीच बोली जानी वाली सबसे झूठी बात थी।
पता नहीं क्यों,मग़र मुझे लगता है कि जब आपसे ऐसा कोई बोलता है तो सबसे ज्यादा फर्क उसी को पड़ता है जो इसको बोलता है।
वो बात अलग है कि आपके व्यवहार से उसे किसी बात की नाराजगी हो,या जिस बात की सम्भावना उसे न हो वैसा कुछ आपके या उसके द्वारा हो गया हो।
तब वो इंसान कुछ और न बोल पाने की वजह से बस यही बोल पाता है कि, ‘हमको
फरक नहीं पड़ता’,’हमें क्या अधिकार है!’ जिसे आपकी बात ज्यादा बुरी लगी हो वो इसमें यह भी जोड़ देता है-‘हम कौन हैं तुम्हारे ?’ इससे उसे लगता है कि उसकी बात का वजन बढ़ गया। खैर,वजन का क्या बात तो बात है।
आज हम प्रेम की बात नहीं करेंगे,बिल्कुल नहीं..और तुम्हारा फ़ोन डिस्चार्ज है..या तुम्हें फ़रक पड़ता है! इसलिए,आज ये बात नहीं। आज हम बात करेंगे ऐसे ही,बस हमारे बीच हुई बातों की बात।
हम सब जानते हैं कि जो हो जाता वो अपने से हो जाता है,क्योंकि हममें खुद का कुछ है ही नहीं। जो भी है या तो प्राकृतिक है या दुनिया के नियमानुसार,इसीलिए चाहे वो प्रेम हो या तुम्हारा फ़ोन डिस्चार्ज होना बस सब हो जाता है। प्रेम प्राकृतिक है और फोन डिस्चार्ज होना इस दुनिया के नियमों में से एक।
वैसे इस मामले में भी हम दोनों समान हैं कि दुनिया के नियम हमें पसंद नहीं, लेकिन अमल कर रहे हैं,क्योंकि इधर मेरा परिवार है और उधर तुम्हारा संसार। वैसे,इस बात से भी तुम्हारा मूड बिगड़ेगा कि,तुम मेरे संसार को उधर क्यूँ लिखा ? अपनी तरफ क्यूँ नहीं ? और यह सही भी है कि तुम्हारा मूड बिगड़ना चाहिए,क्योंकि तुम नियम को एक किनारे रख कर प्राकृतिक की ओर बढ़ चुकी हो,जहाँ मैं भी हूँ। यह भी शत-प्रतिशत सच भी है कि हम दोनों सबसे ज्यादा खुश इस प्राकृतिक वाले क्षेत्र में ही हैं,लेकिन सोचो जब तुम इस इस क्षेत्र से बाहर निकलती हो और नियमों के साथ होती हो,तो क्या खुद को स्वतंत्र महसूस करती हो! नहीं न,क्योंकि नियम ‘बन्धन’ है और प्राकृतिक ‘स्वतंत्रता।’ ऐसी स्वतंत्रता, जहां तुम कुछ भी बोल सकती हो,जैसे कि,’हमको फरक नहीं पड़ता’ या ‘हमें क्या अधिकार है!’ कुछ भी कर सकती हो,जैसे तमाम नियमों को तोड़ कर खुश होना,और ये खुश होना ही सब-कुछ के बराबर है। इस क्षेत्र के बाहर जाते ही तुम्हें ये बोलने या करने से पहले हजार बार सोचना होगा कि किससे बोलें ? और अगर बोलें तो वो सामने वाला क्या जवाब(प्रतिक्रिया) देगा। वो बात बन्द करेगा,या ऐसे ही मुझसे लिख कर बातें करने की कोशिश करेगा। है न !
और सुनो,शाम बुरी नहीं होती,क्योंकि मुझे लगता है कि किसी शाम..अचानक,तुम आओगी मुस्कुराते हुए दरवाज़े पर मेरे… हथेलियों में थामे…मेरे लिए तुम्हारी शाम लेकर…तुम आओगी…।

परिचय-कुँवर प्रताप सिंह का साहित्यिक उपनाम `कुंवर बेचैन` हैl आपकी जन्म तारीख २९ जून १९८६ तथा जन्म स्थान-मंदसौर हैl नीमच रोड (प्रतापगढ़, राजस्थान) में स्थाई रूप से बसे हुए श्री सिंह को हिन्दी, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। राजस्थान वासी कुँवर प्रताप ने एम.ए.(हिन्दी)एवं बी.एड. की शिक्षा हासिल की है। निजी विद्यालय में अध्यापन का कार्यक्षेत्र अपनाए हुए श्री सिंह सामाजिक गतिविधि में ‘बेटी पढ़ाओ और आगे बढ़ाओ’ के साथ ‘बेटे को भी संस्कारी बनाओ और देश बचाओ’ मुहिम पर कार्यरत हैं। इनकी लेखन विधा-शायरी,ग़ज़ल,कविता और कहानी इत्यादि है। स्थानीय और प्रदेश स्तर की साप्ताहिक पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में स्थानीय साहित्य परिषद एवं जिलाधीश द्वारा सम्मानित हुए हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-शब्दों से लोगों को वो दिखाने का प्रयास,जो सामान्य आँखों से देख नहीं पाते हैं। इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद,हरिशकंर परसाई हैं,तो प्रेरणापुंज-जिनसे जो कुछ भी सीखा है वो सब प्रेरणीय हैं। विशेषज्ञता-शब्द बाण हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी केवल भाषा ही नहीं,अपितु हमारे राष्ट्र का गौरव है। हमारी संस्कृति व सभ्यताएं भी हिंदी में परिभाषित है। इसे जागृत और विस्तारित करना हम सबका कर्त्तव्य है। हिंदी का प्रयोग हमारे लिए गौरव का विषय है,जो व्यक्ति अपने दैनिक आचार-व्यवहार में हिंदी का प्रयोग करते हैं,वह निश्चित रूप से विश्व पटल पर हिन्दी का परचम लहरा रहे हैं।”

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