दीप्ति खरे
मंडला (मध्यप्रदेश)
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किरदार-ए-ज़िंदगी,
कुछ इस तरह निभा लिया
किरदार को जीते-जीते,
खुद को भुला दिया।
आइना भी भुला बैठा,
शख्सियत हमारी
किरदार को ही हमारा,
चेहरा समझ लिया।
तमाम उम्र जीते रहे,
अलग-अलग किरदारों को
खत्म हुआ तब खेला,
रंगमंच का पर्दा जो गिर गया।
सुकून है बस इतना,
याद रखेंगे लोग मुझे उन किरदारों में।
तमाम उम्र शिद्दत से,
जिनको हमने जिया॥