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कुछ भी करने को मजबूर…

मीरा सिंह ‘मीरा’
बक्सर (बिहार)
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जीवन संघर्ष (मजदूर दिवस विशेष)…

सुख-सुविधाओं से
कोसों दूर,
पापी पेट की खातिर
कुछ भी करने को मजबूर,
होते हैं मजदूर।

जहां मिले रोजी-रोटी,
डालते वहीं रैन-बसेरा
श्रम के उपासक,
कर्म के साधक
विकसित समाज के सृजक।

गजब तुम्हारी तकदीर,
दुःख तुम्हारा जागीर
मगर हताश नहीं होते,
निराश नहीं होते
साधारण होकर भी तुम,
असाधारण बन जाते हो।

ये बड़े-बड़े पुल,
ऊँचे-ऊँचे बांध
पतली-चौड़ी सड़कें,
ऊँची-ऊँची इमारतें
सब तुम्हें पहचानते हैं,
तुम्हारे कदमों की
आहट जानते हैं।

सबके हृदय पर,
तुम्हारा अमर नाम अंकित है
तुमने सींचा है सबको,
अपने खून-पसीने से।

जेठ की दुपहरी में भी,
नंगे बदन तुम झुलसे नहीं
अभाव की भट्टी में,
तपकर राख नहीं हुए
फौलाद बने और,
लिखते रहे अनवरत
संघर्ष की नई पटकथा।

सभ्यताओं का विकास,
सिर्फ तुम्हारे कारण हुआ
सोना बन गया पत्थर,
जिसे कभी तुमने छुआ।

भूखे पेट रहकर भी,
मन से मुस्कुराते हो
दु:ख का ग़म नहीं करते,
ठहाका लगाकर हँसते हो।

इतनी ऊर्जा कहाँ से लाते हो!
तुम्हारी हँसी सुनकर
महलों में रहने वाले,
जल-भुन जाते हैं
अपनी सुख-सुविधाओं में,
झुलसने लगते हैं।

वो भी खुशी की,
झलक पाना चाहते हैं
तुम्हारे जैसा ही,
बिंदास हँसना चाहते हैं
उन्हें चुभता है,
तुम्हारा खुलकर हँसना।
और फुटपाथ पर सोकर,
स्वर्ग को अंगूठा दिखाना॥

परिचय-बक्सर (बिहार) निवासी मीरा सिंह का साहित्यिक उपनाम ‘मीरा’ है। १ अगस्त १९७२ को ग्राम-नसरतपुर (जिला-आरा, बिहार) में जन्मीं और वर्तमान में डुमराँव (बक्सर) में बसेरा है। आपको भाषा ज्ञान-हिन्दी, अंग्रेजी और भोजपुरी का है तो पूर्ण शिक्षा एम.ए. और बी.एड. है। कार्यक्षेत्र- सरकारी विद्यालय में मनोविज्ञान विषय में शिक्षक का है। सामाजिक गतिविधि में लोगों में जागरूकता लाने वाले कार्यक्रमों में सहभागिता है। कहानी, लघुकथा, कविता और व्यंग्य लेखन आपकी विधा है। प्रकाशन के अंतर्गत अब तक ४ किताबें (अहसासों की कतरन- काव्य संग्रह, बचपन की गलियाँ-बाल काव्य संग्रह, कुर्सी और कोरोना-व्यंग्य संकलन एवं बच्चों की दुनिया-बाल काव्य संग्रह) प्रकाशित हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में करीब ३० साल से आपकी रचनाएँ प्रकाशित हो रही हैं। लेखनी को प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो विद्यावाचस्पति सम्मान, श्रीमती सरला अग्रवाल स्मृति सम्मान, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शिक्षक शिरोमणि पुरस्कार (पटना), अपराजिता सम्मान २०१८ और २०२३, पाती लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार, बाल साहित्य शोध संस्थान (दरभंगा) द्वारा रामवृक्ष बेनीपुरी शिखर सम्मान व बाल कहानी प्रतियोगिता में प्रथम के अतिरिक्त अन्य पुरस्कार-सम्मान आपको मिले हैं। निःस्वार्थी, कर्मठ और संवेदनशील शिक्षक-साहित्यकार के रूप में चर्चित होना इनकी उपलब्धि है। मीरा सिंह ‘मीरा’ की लेखनी का उद्देश्य दुनिया को खूबसूरत बनाने की कोशिश, दबे-कुचले लोगों की आवाज बनना, आने वाली पीढ़ी में समझ विकसित करके योग्य नागरिक बनने में सहयोग करना हैं। मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा और साहिर लुधियानवी पसंदीदा हिन्दी लेखक हैं तो आसपास का माहौल, सामाजिक विद्रूपताएं, विषम परिस्थितियाँ और प्रकृति में घटित घटनाएं प्रेरणापुंज हैं। ‘मीरा’ की विशेषज्ञता अनकही बातों को समझने में कभी चूक नहीं होना व किसी की पीड़ा समझने व महसूसने का ईश्वरीय वरदान है। आपका जीवन लक्ष्य-समाज में मिले हर किरदार को शानदार ढंग से निभाते हुए जागरूक, सुसंस्कृत और संवेदनशील समाज बनाने में अहम भूमिका निभाना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“फ़ौजी परिवेश में पली-बढ़ी हूँ। देश मुझे जान से प्यारा है और हिंदी तो मेरी माँ जैसी है। इसके प्रचार-प्रसार के लिए जितना भी करूं, जो भी करूं, कम होगा। भाषा के रूप में हिंदी मैट्रिक तक ही पढ़ी है, पर लेखन हिंदी में करती हूँ, क्योंकि हिंदी मेरे हृदय की भाषा है।”