तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान)
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झिलमिलाते तारों में,
चमकता चंद्रमा
सा,
प्रेम हमारा।
भोर का दमकता रवि,
समुद्र-सा गहरा और
आकाश से ऊँचा,
प्रेम हमारा।
मधुबन में खिले पुष्प की महक
और
सीपी में जन्मे मोती-सा,
प्रेम हमारा।
इतराती तितली,
कोयल की कुहुक
और, भ्रमर के गुंजन-सा,
प्रेम हमारा।
आकाश में अपनी छटा बिखेरता,
इन्द्रधनुष और
सावन की रिमझिम-सा,
प्रेम हमारा।
कृष्ण की वंशी के,
मधुर स्वर-सा
और राधा की झनकती झांझर-सा,
प्रेम हमारा।
प्रेम की परिभाषा से,
परे।
अपरिभाषित,
प्रेम हमारा॥
परिचय– श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।