कुल पृष्ठ दर्शन : 212

You are currently viewing मात है धरा यही

मात है धरा यही

डॉ.एन.के. सेठी
बांदीकुई (राजस्थान)

****************************************************

(रचना शिल्प:समवार्णिक छंद है-प्रत्येक चरण में ७ वर्ण;क्रम १ रगण +१ जगण + १ गुरु। २१ २१ २१ २,२१ २१ २१ २)

पावनी धरा सहे,
मानवी विकार को।
स्वारथी सभी बने,
भूल के दुलार को॥

मात है धरा यही,
पालती सदैव ही।
आरती करें सभी,
भूमि भू धरा मही॥

अन्न वित्त धारती,
सृष्टि का भला करे॥
प्यार और नेह ही,
भारती सदा करे॥

वृक्ष खूब ही लगे,
हो धरा हरी-भरी।
गन्दगी करें नहीं,
प्राण वायु हो खरी॥

जिंदगी सुशांत हो,
त्याग भावना रहे।
स्वारथी बने नहीं,
स्वच्छता यहाँ रहे॥

नीर होय निर्मला,
भूमि वायु शुद्ध हो।
पूर्ण हो तड़ाग भी
ना धरा अशुद्ध हो॥

दोष शांत हो सभी,
भूमि ताप ना बढ़ें।
एक हो सभी मिले,
ताप पाप से लड़ें॥

परिचय-पेशे से अर्द्ध सरकारी महाविद्यालय में प्राचार्य (बांदीकुई,दौसा)डॉ.एन.के. सेठी का बांदीकुई में ही स्थाई निवास है। १९७३ में १५ जुलाई को बांदीकुई (राजस्थान) में जन्मे डॉ.सेठी की शैक्षिक योग्यता एम.ए.(संस्कृत,हिंदी),एम.फिल.,पीएच-डी., साहित्याचार्य,शिक्षा शास्त्री और बीजेएमसी है। शोध निदेशक डॉ.सेठी लगभग ५० राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में विभिन्न विषयों पर शोध-पत्र वाचन कर चुके हैं,तो कई शोध पत्रों का अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशन हुआ है। पाठ्यक्रमों पर आधारित लगभग १५ व्याख्यात्मक पुस्तक प्रकाशित हैं। कविताएं विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपका साहित्यिक उपनाम ‘नवनीत’ है। हिंदी और संस्कृत भाषा का ज्ञान रखने वाले राजस्थानवासी डॉ. सेठी सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत कई सामाजिक संगठनों से जुड़ाव रखे हुए हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत तथा आलेख है। आपकी विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में शोध-पत्र का वाचन है। लेखनी का उद्देश्य-स्वान्तः सुखाय है। मुंशी प्रेमचंद पसंदीदा हिन्दी लेखक हैं तो प्रेरणा पुंज-स्वामी विवेकानंद जी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
‘गर्व हमें है अपने ऊपर,
हम हिन्द के वासी हैं।
जाति धर्म चाहे कोई हो 
हम सब हिंदी भाषी हैं॥’

Leave a Reply