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कुत्ता पालने का शौक

डॉ. सोमनाथ मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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ऑफिस से घर पहुंचा ही था तो देखता हूँ कि मेरे दोनों बच्चे अपने हाथों में एक-एक देसी कुत्ते का बच्चा पकड़े हुए गोदी में रखे हुए हैं और बेसब्री से मेरा इन्तजार कर रहे थे। मुझे देखते ही दोनों चहकने लगे और ज़िद करने लगे कि पिताजी हमें कुत्ता पालना है। मैंने उनसे पूछा कि आप लोग ने अपनी माँ से इस विषय पर बात कर ली है क्या ? दोनों बच्चे अपने मुँह फुलाकर बोलने लगे, पूछा तो था, पर आप तो जानते ही हैं कि माँ हमारे हर काम में नहीं बोल देती है। हमें कभी कोई अच्छा काम करने नहीं देती। जब से हम कुत्ते का बच्चे लाए हैं, तब से माँ हमें बहुत डांट रही है। कहती है इन्हें तुरंत अपनी माँ के पास छोड़कर आओ। इनकी अभी आँख भी नहीं खुली है, और ये अभी दूध पीते बच्चे हैं। इन्हें मैं अपने घर में किसी हाल में प्रवेश करने नहीं दूंगी, और अंत में अपना फैसला सुना दिया कि हमारे घर में कुत्ता नहीं रहेगा।
मैंने बोला -माँ ठीक ही कह रही है, जाकर अभी इन्हें अपनी माँ के पास छोड़ आओ, इनकी माँ को इनकी फिकर हो रही होगी। दोनों बच्चे अपने पाँव पटककर अपना रोष जाहिर करते हुए बोले कि आप लोगों से अच्छे तो रामू के मम्मी-पापा हैं। रामू भी एक कुत्ते के बच्चे को उठाकर घर लेकर गया है, पर वे उसे कुछ नहीं बोले। ठीक उसी वक्त मेरी पत्नी घर के भीतर से प्रकट हुई और अपने बच्चों के कान खींचते हुए बोली तो फिर जाओ रामू के मम्मी-पापा के पास और उन्हें मम्मी-पापा कहकर बुलाओ। हमारे यहाँ पर यह सब नहीं चलेगा। बोल देती हूँ हाँ, और सुनिए जी आपने इन बच्चों को बहुत ज्यादा सिर पर चढ़ाकर एकदम बंदर बना दिया है।
दोनों बच्चे अब लोट-लोट कर रोने लगे और ज़िद पर अड़ गए कि इन कुत्तों को वे पालेंगे जरूर, चाहे कुछ भी हो जाए। बड़ी मुश्किल से मैंने पत्नी को मनाया कि जब बच्चे ज़िद कर रहे हैं तो इन कुत्तों को रख लेते हैं। पत्नी ने बहुत मुश्किल से बहुत सारी शर्तों के साथ कुत्ते रखने की बात मानी।
बच्चे बहुत खुश हो गए, रोना-धोना बंद कर अब अपने-अपने कुत्तों को अंग्रेजी सिखाने लग गए। मुझे भी लगा कि पड़ोस में मोहन बाबू रहते हैं, वे भी अपने कुत्ते के साथ अंग्रेजी में बात करते हैं, पर मुझे न जाने क्यों लगता है कि उनका कुत्ता विदेशी नस्ल का है शायद इसीलिए हिंदी नहीं समझता होगा। मेरे बच्चे इन देशी कुत्तों को अंग्रेजी क्यों सिखा रहे हैं, समझ मैं नहीं आया। मेरी समझ में इन कुत्तों को अगर हिंदी भाषा सिखाई जाए तो वे जल्दी से सीख जाएंगे।
बच्चों ने दोनों का नामकरण अंग्रेजी में किया। एक का नाम टाइगर रखा (जो किसी सूरत में शेर नहीं लग रहा था) और दूसरे का नाम जैक रखा। वे दोनों पढाई-लिखाई छोड़ कर उन्हें अंग्रेजी में कम-कम, गो-गो, नो-नो, सिट-सिट सिखाने लगे। मुझे लगा कि ये कुत्ते के बच्चे एक ही दिन में अंग्रेजी में पारंगत हो जाएंगे।
लगता है कि वे दोनों कुत्ते के बच्चे अपने इस प्रशिक्षण से तंग हो गए थे। तब एकाएक उन बेचारों को भूख लग गई और जोर-जोर से रोने लगे। पत्नी ने २ कटोरी में दोनों को दूध दिया, वे बड़े मजे से छोटी जीभ द्वारा चाट-चाटकर दूध पीने लगे। मुझे भी उनकी हरकत बहुत पसंद आने लगी। रात को उनके सोने का बंदोबस्त किया गया। हम लोगों ने गत्ते के बक्सा में कपड़े डाल कर उनके लिए बिस्तर बनाया और उन्हें उस डब्बे के भीतर डालकर ऊपर का ढक्कन में छेद बनाकर ढक दिया।
जैसे ही घर की बत्ती बुझाई गई, कुत्ते के बच्चे जोर-जोर से रोने लगे। हम लोगों ने  सोचा कि वे कुछ देर रोकर शांत हो जाएंगे, पर काफी समय हो गया तो भी वे लोग रो-रोकर हमें सोने नहीं दे रहे थे। और यहाँ पर मेरे दोनों बच्चे एकदम से घोड़े बेचकर सो रहे थे। उन्हें इस रोने-धोने की आवाज़ तक सुनाई नहीं पड़ रही थी।
इधर मेरी पत्नी की कामेंट्री चालू थी, कितनी बार बोला कि हमारे घर में कुत्ता नहीं रख सकते हैं। इन्हें पालने में बहुत झमेला होता है, पर इस घर में मेरी कोई सुनता ही नहीं। दिनभर काम करके थक जाती हूँ और यहाँ पर रात को भी सोने को नहीं मिल रहा है। अंत में मैंने झल्लाकर उठकर जैसे ही बत्ती जलाई, दोनों बच्चे रौशनी देखकर चुप हो गए। मैंने जैसे ही बक्से का ढक्कन हटाया तो वे जल्दी से बाहर निकलकर आ गए और मेरे साथ खेलने लगे। मुझे अच्छा तो लग रहा था पर मुझे बहुत जोर से नींद आ रही थी, इसीलिए उन्हें खुला छोड़ एक कमरे की बत्ती जली छोड़कर वापस आकर सो गया।
सबेरे पत्नी की चीख से मेरी नींद खुली, मैं घबरा कर जल्दी से उठा कि क्या बात हो गई  है, कहीं कोई अनहोनी तो नहीं हो गई है ? उठकर जैसे ही मेरा पाँव फर्श पर पड़ा तो पैर फिसल गया। देखा तो पानी पड़ा हुआ था। खैर, थोडा आगे बढ़ा तो पाया कि घर की  सारी फर्श कुत्तों की गन्दगी से पटी पड़ी है, और जिसे मैं पानी समझ रहा था वह असल में उनकी सू-सू थी।
पत्नी बहुत क्रोधित थी। उसने दोनों बेटों को नींद से कान पकड़कर उठाया और पीठ पर धौल जमाते हुए तुरंत कुत्ते के बच्चों को वापस छोड़ कर आने को बोली। बच्चों को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि बात क्या है, पर वे माँ का रौद्र रूप देखकर समझ गए थे कि मामला गड़बड़ है, इसलिए वे दोनों चुप-चाप नींद से उठकर कुत्ते के बच्चों को वापस उसकी माँ के पास छोड़कर आए। फिर माँ ने दोनों से घर की सफाई करवाई, ताकि उन्हें याद रहे और आइंदा कुत्ते के बच्चों को पालने के लिए घर न लाएं। उसके बाद मेरे दोनों बेटों ने फिर कभी कुत्ता पालने का ज़िद नहीं की…।

परिचय- डॉ. सोमनाथ मुखर्जी (इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विस -२००४) का निवास फिलहाल बिलासपुर (छत्तीसगढ़) में है। आप बिलासपुर शहर में ही पले एवं पढ़े हैं। आपने स्नातक तथा स्नाकोत्तर विज्ञान विषय में सीएमडी(बिलासपुर)एलएलबी,एमबीए (नई दिल्ली) सहित प्रबंधन में डॉक्टरेट की उपाधि (बिलासपुर) से प्राप्त की है। डॉ. मुखर्जी पढाई के साथ फुटबाल तथा स्काउटिंग में भी सक्रिय रहे हैं। रेलवे में सहायक स्टेशन मास्टर के पद से लगातार उपर उठते हुए रेल के परिचालन विभाग में रेल अधिकारी के पद पर पहुंचे डॉ. सोमनाथ बहुत व्यस्त रहने के बावजूद पढाई-लिखाई निरंतर जारी रखे हुए हैं। रेल सेवा के दौरान भारत के विभिन्न राज्यों में पदस्थ रहे हैं। वर्तमान में उप मुख्य परिचालन (प्रबंधक यात्री दक्षिण पूर्व मध्य रेल बिलासपुर) के पद पर कार्यरत डॉ. मुखर्जी ने लेखन की शुरुआत बांग्ला भाषा में सन १९८१ में साहित्य सम्मलेन द्वारा आयोजित प्रतियोगिता से की थी। उसके बाद पत्नी श्रीमती अनुराधा एवं पुत्री कु. देबोलीना मुख़र्जी की अनुप्रेरणा से रेलवे की राजभाषा पत्रिका में निरंतर हिंदी में लिखते रहे एवं कई संस्था से जुड़े हुए हैं।