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कृष्ण भक्ति आवली

सरोज प्रजापति ‘सरोज’
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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हे मेरे श्याम सुंदर, जप लूँ तेरा नाम,
हाथ जोड़ विनती सुनो, हे प्राणों के प्राण।

मुझे प्रेरणा तुम देना, रखना सिर पर हाथ,
मेरे मन अभाव भाव, भरना भाव भण्डार।

मेहर करो हे कृष्ण जी, मैं लिखती ही जाऊँ,
नाम मेरा हो जाए, कर दे तू गर काम।

राधा-मीरा मैं नहीं, न मैं गोपी न ग्वाल,
तू ही बता हे मोहन, कैसी है यह प्रीत।

हे गिरधारी गोपाल, ये मीरा के बोल,
निश दिन रटती मैं रहूँ, श्याम-श्याम के बोल।

स्वार्थ स्वार्थी सब जग में, बिना स्वार्थ की रीत,
स्वार्थ रहित कृष्ण मुरारी, तुम ही सांचे मीत।

दिन-दिन उमर बीत चली, भज मन नंद गोपाल,
फिर पछताए क्यों रे मन, जब बीते दिन टाल।

बीच नदी नाव ‌पुरानी मझधार में श्याम,
तुम ही बचा लो हे हरि, बन जाओ मांझी तुम।

कृष्ण भक्ति की धार बहे, प्रतिदिन बढ़ती जाए,
मन का मैल धुला नहीं, झूठी धार बहाए।

हे प्रभु! आकर बस जाओ, मन मंदिर में श्याम,
किसे पुकारूं हे! मोहन, देख दशा हे श्याम।

लोग कह तुम चतुर चोर, लेकिन हो अति निश्छल,
कहते जो कहते रहें, तुम हो दीन दयाल।

जिव्हा बोले बनवारी, होंठ कहे हे! राम।
आ जाते जो तुम यहीं मधुवन-सा हो श्याम।

विष प्याला हँस, पी गई, मीरा कर के ध्यान,
हम पीएं भक्ति रस पान, ये तुम देना दान॥

परिचय-सरोज कुमारी लेखन संसार में सरोज प्रजापति ‘सरोज’ नाम से जानी जाती हैं। २० सितम्बर (१९८०) को हिमाचल प्रदेश में जन्मीं और वर्तमान में स्थाई निवास जिला मण्डी (हिमाचल प्रदेश) है। इनको हिन्दी भाषा का ज्ञान है। लेखन विधा-पद्य-गद्य है। परास्नातक तक शिक्षित व नौकरी करती हैं। ‘सरोज’ के पसंदीदा हिन्दी लेखक- मैथिली शरण गुप्त, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और महादेवी वर्मा हैं। जीवन लक्ष्य-लेखन ही है।