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कैसा दौर आया…??

सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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कैसा दौर आया…??
आँख में न शर्म रही, बात ना मिठास भरी,
दिल भरे कलुष से, लोग दो-गले हुए
भावना अब सूख गई, चाल के प्रताप से,
हम खड़े उदास हुए, आस ना बची हुई
स्वर्ण युग बीत गया, आँख के करीब से,
लोग भी नहीं बचे, सरल हृदय से सजे।

अब नहीं उम्मीद रही, मन भरे तनाव से,
कुछ ही दिल बचे रहे, बाकी स्वर्ण से मंजे
याद कर रही खड़ी, उदास मन की गाँठ से,
देवता भी मूक बने, ताकते से आड़ से।
सब तरफ ही रोष है, मृदुलता नहीं बची,
मन को न पसंद आए, हाय कैसा दौर है॥