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‘कोरोना’ काल में रची कविताओं पर हुई ऑनलाइन विचार गोष्ठी

मंडला(मप्र)।

‘कोरोना’ काल में रची गई कविताओं की ऑनलाइन प्रस्तुति का कार्यक्रम सिद्धेश्वर के संयोजन में आयोजित हुआ। इसमें विशिष्ट अतिथि प्रो.(डॉ) शरद नारायण खरे (म.प्र)ने कहा कि कोरोना काल में डिजिटल पटलों पर गतिशीलता दिखी, जहां छंद विशेषज्ञों ने श्रेष्ठतापूर्ण सृजन व सीखने-सिखाने का परिवेश बनाया। नई प्रतिभाओं की खोज की,और लोगों को साहित्य से जोड़ने का महती काम किया।
इस कवि सम्मेलन में विज्ञान व्रत(नोएडा) ने कविता पढ़ी-‘पास आना चाहता हूँ,बस बहाना चाहता हूँ!,काश खुद भी सीख पाता,जो सिखाना चाहता हूँ!’ हरिनारायण सिंह हरि(समस्तीपुर)ने ‘रख न सके तुम हमको,संकट के दिन में,इससे तो सचमुच ही,अपना गाँव भला!!’ सुनाई तो डॉ. कुंवर वीर सिंह ‘मार्तण्ड'(कोलकाता)ने ‘तन से रखो दूरियां यारों,मन से प्रीति बढ़ाना,अब वियोग के नहीं,मात्र संयोग गीत ही गाना! की प्रस्तुति दी। ऐसे ही भगवती प्रसाद द्विवेदी, संतोष मालवीय,विजयांद विजय,दुर्गेश मोहन,डॉ. मेहता नागेंद्र,पुष्प रंजन कुमार,मीना कुमारी परिहार,डॉ. माधुरी भट्ट एवं राज प्रिया रानी और कालजयी घनश्याम आदि ने भी रचनाएँ प्रस्तुत की।
इस तरह कोरोना काल से संदर्भित एक से बढ़कर एक कविताओं का दौर चलता रहा। संयोजक सिद्धेश्वर के संचालन इस सम्मेलन में देश भर के २५ से अधिक कवियों ने भागीदारी दी। इनके अतिरिक्त ‘सुनो कविता’ के अंतर्गत सिद्धेश्वर ने साभार कविताओं को प्रस्तुत किया,जिनमें नागार्जुन,रामदरश मिश्र,यश मालवीय,प्रदीप सिन्हा, नवीन माथुर पंचोली,नसीमा निशा,संदीप राशिनकर, अरुण सज्जन व नरोत्तम शिल्पी की कविता शामिल रही।
सम्मेलन के मुख्य अतिथि वरिष्ठ शायर विज्ञान व्रत ने कहा कि,कोरोना काल में कविता की सृजनशीलता बढ़ी है। डिजिटल प्लेटफार्म के माध्यम से आम आदमी के करीब पहुंची है कविता, जो कोरोना काल की देन है।
सम्मेलन में पढ़ी गई कविताओं पर अध्यक्षीय टिप्पणी देते हुए हरि नारायण सिंह हरि ने कहा कि, कवि सम्मेलन में पढ़ी गई अधिकांश कविताएं, सपाटबयानी से दूर लयात्मकता से सज्जित हैं l कोरोना काल में सृजित कविता पर विस्तार से डॉ. पुष्पा जमुआर ने चर्चा की।

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