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खुशी चीजों में नहीं

राधा गोयल
नई दिल्ली
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न माँगूं मैं सोना-चाँदी, न हीरों का हार,
मुझे चाहिए अपने साजन का थोड़ा-सा प्यार
न चाहूँ मैं महल-दुमहले, पैसों का अम्बार,
साथ सजन का है, तो फूल बनेंगे राह के खार।

सजन धन पर इतराते, घर में तो कम ही आते
औरों के संग में रहकर, रंग-रलियाँ खूब मनाते,
उनका यह हाल देखकर, खून के आँसू पीती,
रोज मर-मर कर जीती।

कोई मुझसे छीन लो, धन का यह आगार,
शांत झोपड़ी भीख में, देदो मुझको आज
यहाँ सुख नजर न आए, देख धन, जी मचलाए,
सजन का साथ मिले तो, सुकूं दिल को मिल पाए।

एक-दूसरे के सब सुख-दु:ख,
दोनों मिलकर बाँटेंगे,
राहों के सारे काँटे, दोनों मिल कर छाँटेंगे
सजन का साथ जो पाऊँ, ग़मों में भी मुस्काऊँ,
कितनी बाधाएं आएं, उनसे टक्कर ले पाऊँ।

कम खा और ग़म खाकर, मैं बहुत सुखी रहूँगी,
सजन का प्यार नहीं तो धन की ढेरी पे बैठकर, अश्क ही पीती रहूँगी
सजन को मुझसे प्यार हो, झोपड़ी में बहार है,
सजन जब साथ नहीं हैं, महल भी बे-बहार है
आपसी प्यार नहीं है, ऐसे धन का क्या करना ?
अकेले तड़प रही हूँ, तो महलों का क्या करना ?

मेरा तो यही है कहना,
बात सच कहती बहना।
‘खुशी चीजों में नहीं है’,
मेरी तो सोच यही है॥