हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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अब तो पूरे देश में उत्सव की ज्योति प्रकाशमान होने वाली है। त्योहार व पर्व की मस्ती में नए जमाने के सुकून के पल नहीं, भागम-भाग की दौड़ है। इसलिए रेडिमेड का दौर है, सब चीजें बनी- बनाई चहिए सभी को। बुजुर्ग वर यह तमाशा देख कर मुस्काते हैं और कहते हैं “वाह रे नया जमाना।” शुद्धता के लिए परेशान लोग, नकली हवा व कृत्रिम साँसों के लिए भी भाग-दौड़… अब पहचान ही कहाँ है ? सब जगह अपनी-अपनी डफली अपना ढोल बजा रहा है हर कोई, लेकिन कुछ ऐसे लोग तो मौके की तलाश में रहते हैं लोगों को चूना लगाने की और नम्बर २ का खेल खेलते हैं। कभी मिलावट पर भी ध्यान दो सरदार…। बहुत परेशानी है, शुद्धता की चाह में हम तो दर-दर भटक रहे हैं। गाँव-शहर में हम तो जीते-जी मर रहे हैं। अब आप फिर से आओ हमारे यहाँ असरदार बन कर। झिलमिलाती इस रोशनी में काली छाया यानी काला कारोबार इतना ज्यादा हो रहा है कि हमें तो समझ में नहीं आता है। जांच-पड़ताल के नाम पर कारोबारी झोली भर देते हैं, दाता फिर कौन-सी रिपोर्ट या जांच…? सबके-सब बेकार साबित हो रहे हैं। हवन-पूजन धूप-दीप को भी नहीं छोड़ते, चोट पर चोट करते हैं। शुद्ध देसी घी अपनी असली पहचान को तलाश रहा है। सौ प्रतिशत शुद्ध घी मिलना मुश्किल है, और दूध में मिलावटी क्या-क्या मिला रहे हैं, अगर देख लेंगे तो आँखें चार हो जाएगी। पनीर भी रसायन युक्त नकली और मावा तो हर वर्ष अपना नाम रोशन कर रहा है ‘नकली मावा’ नाम से। फिर क्या करें, मुनाफाखोरों ने हमारी खाने-पीने की वस्तुओं को भी नहीं छोड़ा। इन्हें तो सिर्फ पैसे कमाने की चिंता है, जो लोगों के लिए चिता साबित होती है। अभी नकली दवाई की बात है, और कहीं ऊँची दुकान और फीके पकवान की बात है। परम्परागत बाजारों की रौनक तो अब माॅल व शो-रूम ने ले ली है। उपभोक्ताओं को सब ठगा हुआ लग रहा है, फिर भी आदमी नए जमाने में भेड़चाल चलने को मजबूर है, लेकिन रेडिमेड में विश्वास करने वाली नई पीढ़ी जेन जी यानी नए जमाने को सब तैयार और हाथों-हाथ चहिए। उसे इंतजार करना पसंद नहीं है। कम्प्यूटर, लेपटॉप और मोबाइल के युग में बड़ी-बड़ी बातों में उलझ जाते हैं, पर बाद में कर व अलग-अलग प्रभार में घिरते हुए उपभोक्ता व्यापारियों के जाल में फंस जाते हैं। बाद में पछताता भी है, लेकिन बाद में पछताने से क्या होता है, जब चिड़िया चुग गई खेत…।
त्योहारों के मौसम में यह सब गड़बड़झाले का खेल ज्यादा तेजी से खेला जाता है। मिलावटी वस्तुओं ने पूरे तंत्र को अपने मोहपाश में घेर लिया है। और सरदार तो मस्त ही नहीं, वह तो कुछ देखते भी नहीं, कुछ बोलते भी नहीं, और कुछ सुनते ही नहीं हैं। यानी वह देखते तो सब कुछ हैं लेकिन मौन हैं, जो खतरनाक साबित हो रहा है। खेल और खिलाड़ियों के इस वन-डे, टेस्ट या टी-ट्वेंटी मैच में कोच असरदार चाहिए, तभी परिणाम में अभ्यर्थी उत्तीर्ण होंगे। अगर ऐसा नहीं करते हैं, तो मिलावट के सौदागरों की जमात और बढ़ती जाएगी, जिससे लोगों को भी तकलीफ़ होगी। इसलिए कहता हूँ इस और ध्यान दो सरदार।