डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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भाद्र शुक्ल शुभ चतुर्थी, श्री गणेश अवतार।
सिद्धिविनायक वन्दना, विघ्नेश्वर संसार॥
गणपति जी आराधना, प्रेम भक्ति मन भाव।
सकल मनोरथ पूर्ण हो, मिटे विघ्न खल घाव॥
पूजन मंगलमूर्ति की, वैदिक मंत्र विधान।
लम्बोदर बप्पा कृपा, मिले विभव यश मान॥
वंदन पूजन प्रार्थना, मूषिकवाह विशेष।
करूँ आरती भक्तिमन, मिले समृद्धि अशेष॥
गणपति बप्पा मौरया, दे भक्तन उत्कर्ष।
देव गजानन वन्दना, फैले दुनिया हर्ष॥
नमन चतुर्भुज गणपति, मोदकहस्त अनंत।
रक्ताम्बर अंकुशधर, कृपासिंधु एकदन्त॥
पंचदेव में श्रेष्ठतम, अभयंकर गणनाथ।
आदिरूप पूजित जगत, शरणागत प्रभु साथ॥
रोग शोक मद कोप छल, मृगतृष्णा संसार।
रिद्धिमान पाणि परशु, त्राता जग आधार॥
शूर्पकर्ण गणपति नमन, विघ्न विनायक लोक।
पाप त्रिविध का नाश हो, अन्तर्मन तम शोक॥
हरो विघ्न संकट प्रकृति, वसुधा मनुज विनाश।
गिरिजानन्दन पद भजें, मिले मुक्ति जग आश॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥