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गलत तथ्यों के आधार पर ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ का आवेदन खारिज़

जनभाषा में न्याय…

मुम्बई (महाराष्ट्र)।

‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुम्बई’ द्वारा दाखिल आईए संख्या- १/२०२४ मुख्य न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन वाली न्याय खंड पीठ (पटना उच्च न्यायालय) के आदेश दिनांक-२९/४/२० २४ द्वारा बिल्कुल ही झूठे तथ्यों के आधार पर खारिज हो गया है।
सीडब्लूजेसी संख्या १७५४२/२०१८ के याचिका कर्ता इंद्रदेव प्रसाद बताते हैं कि, उस पारित आदेश के अनुसार वैश्विक हिंदी सम्मेलन उस रिट याचिका में हस्तक्षेप करना चाह रहा है, जो सरकारी अधिवक्ता का पदमुक्ति आदेश के विरुद्ध दाखिल हुआ है, जो विद्वान महाधिवक्ता (बिहार) पी.के. शाही के झूठे तर्कों पर आधारित है, जिसके लिए उनके विरुद्ध उच्च न्यायालय पटना में ओरिजिनल क्रिमिनल मिसलेनियस संख्या -१/२०२४ दर्ज हो गया है, जिसके न्यायिक कार्यवाहियों में उनको पद पर रहते हुए दांडिक अवमान का दंड मिल सकता है, जबकि जिस मामले में ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ इंटरवीन यानी हस्तक्षेप करना चाह रहा था, वह मामला सरकारी अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद का पद मुक्ति आदेश के विरुद्ध था ही नहीं। वह तो उनकी उस याचिका के लिए था, जिसमें हिंदी की याचिकाओं का अंग्रेजी अनुवाद दिए जाने का नियम है। गलत तथ्य कैसे पहुंचे और किसने रखे, यह भी विचारणीय है।
अधिवक्ता बताते हैं कि, वे तो पदमुक्त हुए ही नहीं हैं। वे हिंदी में वकालत करते हैं इसलिए उनको सरकारी मुकदमों का संचालन करने नहीं दिया जा रहा है। पटना उच्च न्यायालय नियमावली १९१६ का भाग २ अध्याय ३ नियम १ के संदर्भ में, जो प्रावधानित करता है कि, पटना उच्च न्यायालय में सब आवेदन अंग्रेजी भाषा में दाखिल होंगे, उसी हिंदी विरोधी कानून के विरुद्ध उक्त रिट याचिका भारत संघ की राजभाषा हिंदी में दाखिल हुई है, जिसके अंग्रेजी अनुवाद की उनसे मांग की गई है, इसलिए सम्मेलन अपने निदेशक डॉ. एम.एल. गुप्ता के माध्यम से हस्तक्षेप करना चाह रहा था।
एक महत्वपूर्ण घटना यह भी हुई कि, महाधिवक्ता बिहार पी.के. शाही के विरुद्ध भारत संघ की राजभाषा हिंदी में ओरिजिनल क्रिमिनल मिसलेनियस संख्या-१/२०२ ४ दर्ज हुआ है, जिसके संबंध में प्रेस विज्ञप्ति जारी करने पर रोक लगाने की मौखिक प्रार्थना बिहार राज्य की ओर से १७/५/२०२४ को की गई, जो मुख्य न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन वाली न्याय खंडपीठ के मौखिक आदेश से अस्वीकृत हो गया। इसलिए, उस मुकदमे के संबंध में यह प्रेस विज्ञप्ति जारी हो रही है, जिसकी उत्पत्ति निष्पादित मुकदमा सीडब्लूजेसी संख्या १७५४२ /२०१८ से हुई है, जो भारत संघ की राजभाषा हिंदी को आगे बढ़ाने के लिए है। उसमें पटना उच्च न्यायालय नियमावली १९१६ का भाग २ अध्याय ३ नियम १ चुनौती के अधीन है, जो प्रावधानित करता है कि, पटना उच्च न्यायालय में सब आवेदन अंग्रेजी भाषा में दाखिल होंगे।उस मुकदमे में महाधिवक्ता कार्यालय बिहार का वह आदेश भी चुनौती के अधीन है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पटना उच्च न्यायालय नियमावली १९१६ के भाग २ अध्याय ३ नियम १ पर आधारित है।
महाधिवक्ता श्री शाही के अधीनस्थ विधि पदाधिकारी श्री प्रसाद हिंदी में वकालत करते हैं, इसलिए उनको सरकारी मुकदमों का संचालन पटना उच्च न्यायालय नियमावली १९१६ को ढाल बनाकर करने नहीं दिया जा रहा है। इसलिए, सम्मेलन उस मुकदमे का पक्षकार बनकर उसका समर्थन करना चाहता था और उसके लिए उन्होंने उस मुकदमे में आई.ए. संख्या -१/२०२४ दाखिल की थी, जो बिल्कुल ही झूठे तथ्यों के आधार पर खारिज हो गई है कि-‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ वैसे मुकदमे में इंटरवेन करना चाह रहा है, जो सरकारी अधिवक्ता की पदमुक्ति के विरुद्ध दाखिल हुआ है, जो विद्वान महाधिवक्ता बिहार पी.के. शाही के झूठे तर्कों पर आधारित है।
उपरोक्त ओरिजिनल क्रिमिनल मिसलेनियस-१/ २०२४ में विद्वान महाधिवक्ता श्री शाही पर आरोप है कि वे सीडब्लूजेसी संख्या-१७५४२
/२०२४ के न्यायिक कार्यवाहियों में बाधा पहुंचाने के लिए कानून को हाथ में ले चुके हैं और कानून को हाथ में लेकर अपने अधीनस्थ विधि पदाधिकारी इंद्रदेव प्रसाद के नाम से आवंटित कुर्सी-टेबल को हटवा दिए हैं और हटवाने के पूर्व उनको कोई नोटिस नहीं दिए हैं। सुनवाई का कोई मौका नहीं दिए हैं। आदेश का कोई कॉपी नहीं दिए हैं, जिसके आलोक में पारित उच्च न्यायालय पटना का आदेश दिनांक-१८/४/२०२४ के आलोक में उनके विरुद्ध उक्त ओरिजिनल क्रि. मि. संख्या-१/२०२४ दर्ज हुआ है, जो न्यायालय अवमान अधिनियम १९७१ की धारा १५ (१) की दृष्टि में पटना उच्च न्यायालय का प्रस्ताव है, जिसके न्यायिक कार्यवाहियों में उनको दांडिक अवमान का दंड मिल सकता है, जिसके पक्षकारों के जमात में पटना उच्च न्यायालय पटना, एडवोकेटस एसोसिएशन पटना उच्च न्यायालय पटना, भारत संघ, बिहार राज्य, बार काउंसिल आफ इंडिया, बिहार बार काउंसिल, अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन (दिल्ली), वैश्विक हिंदी सम्मेलन (मुम्बई), भारतीय भाषा अभियान, बिहार प्रदेश का भी नाम समाहित है। आगे की सुनवाई २६ जून २०२४ निर्धारित है। इस मामले पर केंद्रीय सरकार एवं राज्य सरकारों के जवाबदेह पदाधिकारी के साथ-साथ विद्वान अधिवक्ताओं एवं आमजनों का ध्यान केंद्रित है।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुम्बई)