जौनपुर(उत्तर प्रदेश)
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आधुनिक दौर में मनुष्य के बीच से मनुष्यता धीरे-धीरे गायब होती दिख रही है। देश में हिंसा,पाप,अन्याय,अत्याचार,क्रूरता, असहिष्णुता,झूठ,पाखण्ड,भ्रष्टाचार,जाति-धर्म भेद आदि पहले से ज्यादा बढ़ा है। मनुष्य में अपने हित-अहित के बारे में सोचने का भी विवेक नष्ट हो रहा है। आजादी के पहले देश में हम राम राज्य की परिकल्पना करते थे। देश के राजनीतिक,सामाजिक व सांस्कृतिक परिस्थितियों के स्वर्णिम भविष्य का सपना देख रहे थे। इनमें सुधार की जगह अनैतिक मूल्यों को फलने-फूलने की पर्याप्त जगह मिली है। देश के किसान,मजदूर ए़वं बेरोजगार आज भी विसंगतियों से जूझ रहे हैं। दलितों व स्त्रियों का शोषण अब भी हो रहा है। इन सब परिस्थितियों से निकलने के लिए रास्ता दिखाने वाले महापुरुषों में महात्मा गांधी का नाम सर्वोपरि है,जिन्हें देश में आने वाली इन सारी समस्याओं का पूर्व भान था। उस महानायक युगपुरुष को उनके १५० वें जन्मदिन पर याद करके उनके बताए गए मार्ग को जीवन में अपनाकर उनकी चिंताओं को सुलझा लेना,हमारी उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
गांधी एक जननेता थे। अफ्रीका से भारत आने के बाद उन्होंने सम्पूर्ण देश का भ्रमण किया। देश और यहाँ की जनता के हालात को उन्होंने ठीक ढंग से समझा। देश की जनता की पीड़ा को स्पर्श किया। फिर निःस्वार्थ भाव से उनकी समस्याओं को दूर करने का संकल्प लिया। उनके भीतर एक विशिष्ट संवाद शैली थी। वे जनता के बीच में जाते थे,उनसे बातचीत करके उनकी समस्याओं को समझते थेl फिर कोई ठोस और साहसी कदम उठाते थे। वे भारत में स्वराज्य स्थापित करना चाहते थे। स्वराज्य
मतलब अपने मन का राज्य,जिसकी कुंजी सत्याग्रह,आत्मबल या करुणा है,जिसके लिए स्वदेशी का पूरी तरह इस्तेमाल करना चाहते थे।
अंग्रेज़ी शासनकाल में गांधी जी सबसे लम्बी लड़ाई लड़ने वाले योद्धा थे। उन्होंने इंग्लैंड में रहकर वहाँ के कानून का अध्ययन किया था। इसलिए,वे अंग्रेजों की नीति और चाल बखूबी समझते थे। उन्होंने अंग्रेजों के भारत आने और इतने लम्बे समय तक टिके रहने के कारण पर विचार किया तो इसके जड़ में अपनी ही कमी देखी। अंग्रेज़ व्यापार करने के उद्देश्य से आये थे,हमें तरह-तरह के लालच दिए, हमें आपस में लड़ाया,और अपने पैर जमा लिए। हिन्द स्वराज
पुस्तक में उन्होंने एक जगह लिखा है-“हिन्दुस्तान अंग्रेजों ने लिया सो बात नहीं है,बल्कि हमने उन्हें दिया है। हिन्दुस्तान में वे अपने बल से नहीं टिके हैं,बल्कि उन्हें हमने टिका रखा है।…… हिन्दुस्तान गया,ऐसा कहने के बजाय ज्यादा सच यह है कि हमने हिन्दुस्तान अंग्रेज़ों को दिया। …… उन्होंने तलवार से हिन्दुस्तान लिया,ऐसा उनमें से कुछ कहते हैं और ऐसा भी कहते हैं कि तलवार से वे उसे रख रहे हैं। ये दोनो बातें गलत हैं। हिन्दुस्तान को रखने में तलवार किसी काम में नहीं आ सकती,हम खुद ही उन्हें यहाँ रहने देते हैं।” इसलिए, गांधी जी ने उन्हें तलवार के बल पर नहीं,बल्कि अहिंसा के बल पर देश से निकालने का संकल्प लिया। उन्होंने अंग्रेज़ी ताकत को कमज़ोर करने के लिए हिन्दुस्तानियों के मस्तिष्क से अंग्रेज़ीयत मिटाने का संकल्प लिया। उन्होंने कहा कि-“जिस कारण से हिन्दुस्तान गुलाम बना,वे कारण अगर दूर कर दिए जाएं तो वह बंधन से मुक्त हो जाएगा।”
महात्मा गांधी एक विरोधी स्वर के व्यक्तित्व थे। स्वतंत्रता की लड़ाई में खड़े रहने वाले वे एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे,जिनकी आवाज देश के कोने-कोने में पहुँचती थी। प्रत्येक घर में उनके आदर्श मूल्यों की चर्चा होती थी। उनके स्वर में स्वर मिलाने के लिए देश की करोड़ों जनता उनके साथ खड़ी थीl उनके आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए लोग स्वतः ही उनके पीछे चल पड़ते। जनता को विश्वास था कि आजादी का मार्ग इन्हीं के रास्तों से निकलेगा। अपने घर में हमें अपने ही सामान का उपयोग करने का अधिकार नहीं था। उन सब चीजों पर सिर्फ अंग्रेज़ों का अधिकार था। गांधी जी ने इस चीज का बड़े पैमाने पर विरोध किया। सर्वप्रथम उन्होंने अंग्रेज़ी सामानों का बहिष्कार किया। अंग्रेज़ी शिक्षा और संस्कृति को अपनाने से इंकार किया। अंग्रेज़ी कानून व भाषा का जमकर विरोध किया। अंग्रेजों के लिए खेती व मजदूरी करने से इंकार किया। हिन्द स्वराज
में उन्होंने लिखा है-“अंग्रेज़ों ने अदालतों के जरिये हम पर अंकुश लगाया है और अगर हम वकील न बने,तो ये अदालत चल ही नहीं सकती। अगर अंग्रेज ही जज होते,अंग्रेज़ ही वकील होते,और अंग्रेज़ ही सिपाही होते तो वे सिर्फ अंग्रेजों पर ही राज करते।” जनता को गांधी जी के इस विचार ने बहुत प्रभावित किया। इससे उनके भीतर एक नयी चेतना का उदय हुआ। देश के कोने-कोने में विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई। अंग्रेज़ी कानून के खिलाफ जगह-जगह मार्च निकाला गया। इससे अंग्रेज़ों के भीतर पूरी तरह से भय पनपने लगा था,जब-जब उन्हें अपना अस्तित्व खतरे में लगता,तब वे गांधी जी को उठाकर जेल में डाल देते थे,किंतु जेल में भी गाँधी जी अंग्रेज़ों से उतना ही लड़ते,
जितना जेल के बाहर लड़ते थे,क्योंकि गांधी जी का विचार पूरे देश में फैल चुका था। अर्थात देश में हजारों गांधी पैदा हो चुके थे।
गांधी जी दृढ़ प्रतिज्ञ व दृढ़ निश्चयी व्यक्ति थे। वे जो निश्चय कर लेते,उसे पूरा किये बिना उन्हें नींद नहीं आती थी। वे अपने मार्ग से विचलित होने वाले व्यक्ति नहीं थे। वे थकना नहीं जानते थे। समय के महत्व को जानते थे। चरखा भी चलाते थे तो उसके भी पीछे एक संदेश और एक निश्चित प्रयोजन होता था। उनका मार्ग अहिंसा का मार्ग था। अहिंसा का मार्ग कोई बहादुर व्यक्ति ही अपना सकता है,डरपोक नहीं। उन्हें अहिंसा की ताकत पर भरोसा था। अहिंसा किसी ताकतवर व्यक्ति के विरूद्ध ही की जा सकती है, कमज़ोर के साथ नहीं। कई बार कांग्रेस लीग के लोग गांधी को नकार भी देते थे,किंतु समय के साथ वे फिर उनके साथ आ जाते थे। उनके भीतर सही और गलत की अच्छी समझ थी। गांधी जनहितैषी व्यक्तित्व थे। वे देश-काल को बहुत दूर तक देखते और समझते थे।
परतंत्र भारत में किसानों व मजदूरों के हालात अच्छे नहीं थे। उनका बहुत शोषण किया जा रहा था और उन पर तरह-तरह के अत्याचार किये जा रहे थे। किसानों को बहुत ज्यादा लगान देना पड़ता था और मजदूरों को भरपेट भोजन और उनकी मजदूरी तक नहीं मिलती थी। गांधी जी इससे बहुत आहत हुए। उस समय पश्चिम में मार्क्सवाद की लहर चल रही थी,गांधी जी उससे परिचित थे,किंतु भारत में उन्होंने इसका प्रयोग अपने ढंग से किया। उन्होंने शोषितों की पीड़ा को महसूस किया,उनके लिए अनशन और आंदोलन किया। उन्हें उनका हक दिलवाया और गोरों के चंगुल से मुक्त कराने का आश्वासन दिया।
गांधी जी भ्रष्टाचार और बेईमानी को जड़ से मिटा देना चाहते थे। वे अंग्रेजों की नीतियों का खुलकर विरोध करते थे। उनमें अपने लोगों में भी इस चीज़ को बर्दाशत करने की आदत न थी। उन्होंने आश्रम में आये पैसे का उपयोग गरीबों,दुःखियों,देशहित और समाजहित में ही किया। सेवाभाव उनका एक विशिष्ट गुण था। वे समाज से छूत-अछूत का भेद मिटाकर सारे जन को एक समान दर्जे में लाना चाहते थे। वे इस समय देश में हो रहे दलितों के प्रति भेदभाव से बहुत खिन्न थे। उन्हें सम्मान देने के लिए उनके लिए हरिजन
शब्द का प्रयोग किया। देश में भाईचारा बनाये रखना उनका परम उद्देश्य था। वे सभी धर्मों को एक समान दृष्टि से देखते थे। हिंदू-मुस्लिम विवाद को खत्म करने की उन्होंने पुरजोर कोशिश की,किंतु उन्हें इस कार्य में वैसी सफलता नहीं मिली,जैसी वे उम्मीद कर रहे थे। इसी वैमनस्य के कारण देश का विभाजन भी हो गया और देश को आजाद कराने वाले गांधी जी की यह सबसे बड़ी हार थी।
गांधी जी ने भारतीय शिक्षा और संस्कृति की रक्षा करने की बात की। वे हिन्दुस्तान की सभ्यता का झुकाव नीति को मजबूत करने की ओर तथा पश्चिम की सभ्यता का झुकाव अनीति को मजबूत करने की ओर मानते थे। उन्होंने पश्चिमी सभ्यता को हानिकारक और निरीश्वरवादी कहा। इसलिए,-“हिन्दुस्तान के हितचिंतकों को चाहिए कि,वे हिन्दुस्तान की सभ्यता से,बच्चा जैसे माँ से चिपका रहता है,वैसे चिपके रहें”, का आह्वान किया। अंग्रेज़ अपनी भाषा और संस्कृति के बल पर हमें कमज़ोर बना रहे थे। हमारे देशवासियों कें मस्तिष्क में अंग्रेज़ियत ठूंस रहे थे। गांधी जी इसे गुलामी का बड़ा कारण मानते थे। वे अंग्रेजी शिक्षा के घोर विरोधी थे। उन्होंने एक जगह कहा है कि-“यह कितने दुःख की बात है कि,हम स्वराज्य की बात भी पराई भाषा में करते हैं। …. हमारे अच्छे से अच्छे विचार प्रकट करने का जरिया है अंग्रेज़ी,हमारी कांग्रेस का कारोबार भी अंग्रेज़ी में चलता है। अगर ऐसा लम्बे समय तक चला तो आने वाली पीढ़ी हमारा तिरस्कार करेगी।” वे शिक्षा की बुनियाद को हिंदी माध्यम में लागू करना तथा भारतीय दर्शन और कला को पूरे विश्व में स्थापित करना चाहते थे। शिक्षा के लिए स्त्रियों को पुरुषों के बराबर अधिकार दिलाना चाहते थे। साथ ही वो चाहते थे कि बच्चों को ऐसी शिक्षा दी जाए,जिससे वे रोजगार का माध्यम ढूंढ सकें और अनवरत उनका सर्वांगीण विकास होता रहे। अक्षर ज्ञान का अगर आभूषण के तौर पर उपयोग हो,तो ऐसी शिक्षा को लाज़िमी करने की जरुरत वे नहीं समझते थे। वे शिक्षा को जीवनोपयोगी बनाना चाहते थे,जिस पर इमारत खड़ा करने से वह टिक सकेगी।
गांधी जी हमारे राष्ट्रपिता है। राष्ट्र का निर्माण करने में गांधी जी के योगदान को कई सदियों तक भुलाया नहीं जा सकता। राष्ट्र का अस्तित्व जब-जब खतरे में आएगा,तब-तब हमें गांधी याद आएंगे। उनका कर्मयोग सदियों तक हमारे काम आता रहेगा और हमें जीवन पर्यन्त उसकी आवश्यकता पड़ती रहेगी।
गांधी एक आदर्श पुरुष हैं। आदर्श पुरुष वे होते हैं,
जो मानवीय लोकोत्तर गुणों से परिपूर्ण हों,जो अपने पावन चरित्र एवं गुणों से दूसरे को प्रभावित कर सके। जिनके बताए रास्ते पर लोग चलने लगे,जिनके मूल्य कभी नष्ट न हों। आदर्श पुरुष सदा-सदा के लिए पू्जनीय होता है। आज सिर्फ भारत ही नहीं,पूरा संसार उनके सत्य-अहिंसा को आत्मसात कर रहा है और उनके जीवन मूल्यों को अपने साथ जोड़ने का प्रयास कर रहा है।
गांधी एक विचार है-नैतिक विचार,दार्शनिक विचार, राजनीतिक विचार और सामाजिक विचार। यह विचार जो कभी न मिटने वाला है। इन विचारों में बड़ी ताकत है। इसके सहारे हम संसार की सारी बुराइयों पर विजय हासिल कर सकते हैं। गांधी एक युग-पुरुष हैं और उनके विचार युगों-युगों तक अमर रहेंगे।
परिचय-दीपक शर्मा का स्थाई निवास जौनपुर के ग्राम-रामपुर(पो.-जयगोपालगंज केराकत) उत्तर प्रदेश में है। आप काशी हिंदू विश्वविद्यालय से वर्ष २०१८ में परास्नातक पूर्ण करने के बाद पद्मश्री पं.बलवंत राय भट्ट भावरंग स्वर्ण पदक से नवाजे गए हैं। फिलहल विद्यालय में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत हैं।आपकी जन्मतिथि २७ अप्रैल १९९१ है। बी.ए.(ऑनर्स-हिंदी साहित्य) और बी.टी.सी.( प्रतापगढ़-उ.प्र.) सहित एम.ए. तक शिक्षित (हिंदी)हैं। आपकी लेखन विधा कविता,लघुकथा,आलेख तथा समीक्षा भी है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कविताएँ व लघुकथा प्रकाशित हैं। विश्वविद्यालय की हिंदी पत्रिका से बतौर सम्पादक भी जुड़े हैं। दीपक शर्मा की लेखनी का उद्देश्य-देश और समाज को नई दिशा देना तथा हिंदी क़ो प्रचारित करते हुए युवा रचनाकारों को साहित्य से जोड़ना है।विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा आपको लेखन के लिए सम्मानित किया जा चुका है।