डॉ. प्रताप मोहन ‘भारतीय’
सोलन(हिमाचल प्रदेश)
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शिक्षक समाज का दर्पण…
शिक्षक एक ऐसा दीपक है, जो स्वयं जलकर जमाने को रोशनी प्रदान करता है। सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन ने कहा था कि “शिक्षक राष्ट्र निर्माता होता है। राष्ट्र का निर्माण करता है।” यह कथन अक्षरशः सत्य है। ताली दोनों हाथ से बजती है। यदि शिक्षक प्रयास कर रहा है परंतु छात्र उसको सहयोग नहीं कर रहा है तो यह कार्य सफल नहीं हो पाएगा।आजकल हम अधिकारों की बात तो करते हैं परंतु हमें अपने कर्तव्यों का ध्यान नहीं रहता है। अधिकारों की मांग वही कर सकता है, जो अपने कर्तव्य भी निभाते हों। हम शिक्षकों से बहुत अपेक्षा रखते हैं कि वह हमारे बच्चों को प्रावीण्य सूची में ले आए, पर शिक्षक का काम है पढ़ाना और छात्र का कार्य है उसको समझना। ना समझ में आने पर दोबारा समझने के लिए शिक्षक से निवेदन करना। आजकल छात्र नहीं समझ में आने पर शर्म के मारे कुछ नहीं बोलते हैं।इसीलिए उनकी पढ़ाई का स्तर नहीं सुधर पाता है।
आजकल शिक्षा का व्यापार हो रहा है। इसीलिए शिक्षकों को उतना सम्मान नहीं मिलता, जिनके वे हकदार हैं। आजकल शिक्षकों को सेवा प्रदाता समझा जाता है। व्यापार में तो लेन-देन होता है, इसमें हम निश्चित मूल्य देकर अपेक्षित वस्तु खरीदते हैं। इसमें कोई अपनापन नहीं आता है।प्राचीन काल में गुरुकुल परंपरा थी। बच्चे गुरुकुल में ही रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे। गुरुजनों का आदर एवं सम्मान करते थे। यदि कोई छात्र गलती करता था तो बाकायदा उसको उचित दंड भी दिया जाता था। आजकल यदि अध्यापक बच्चों को दंड देते हैं तो बच्चे के माँ-बाप इसका विरोध करते हैं।
जो व्यक्ति विद्यार्थी की हर गलती को क्षमा करने की भावना रखता है और उसकी हर कमजोरी दूर कर उसको शिखर तक ले जाता है, सच्चा शिक्षक कहलाता है।
छात्रों का पहला रोल मॉडल शिक्षक होता है। शिक्षकों को चाहिए कि बच्चों को वह स्नेह और आश्वासन दें, जो उसे भविष्य के लिए जिम्मेदारी लेने वाला और अपनी गलतियों से सीख कर आगे बढ़ने वाला इंसान बनाएं, ताकि वह जीवन में प्रगति पथ पर निरंतर आगे बढ़े।
शिक्षक समाज का एक अभिन्न अंग है। समाज की संरचना तथा सामाजिक परिवर्तन में उसकी अहम भूमिका है। आजकल शिक्षकों को एक कर्मचारी समझा जाता है। वह अपने उच्च अधिकारियों और प्रशासनिक आदेशों के सामने विवश है। जैसे उसे निर्देश मिलते हैं, वैसा कार्य करना पड़ता है। यदि अध्यापक चाहते हैं कि उन्हें फिर से गुरु का सम्मान मिले तो उन्हें इन बातों पर ध्यान देना होगा-
🔹सभी छात्रों से एक समान व्यवहार करें। किसी से पक्षपात न करें।
🔹अपनी जिम्मेदारी का पूर्णतः पालन करें और छात्रों को मन लगाकर पढ़ाएं।
🔹ऐसी शिक्षा दें कि बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सके, ताकि वह आने वाले कल का जिम्मेदार नागरिक बन सके।
🔹पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद, विज्ञान, नृत्य, नाटक और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए बच्चों को प्रेरित करें।
🔹ट्यूशन हेतु बच्चों को ना बुलाएं।
🔹शिक्षा को व्यापार ना बनाएं।
शिक्षक यदि सही ढंग से कार्य नहीं कर पाता है तो इसके लिए प्रशासन भी दोषी है, क्योंकि शिक्षक की ड्यूटी चुनाव, जनगणना और अन्य सरकारी कार्यक्रम में भी लगाई जाती है, जिससे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है। शिक्षक भी एक मनुष्य है। यदि छात्र उसके साथ सहयोग नहीं करेंगे अर्थात पढ़ाई पर ध्यान नहीं देंगे तो शिक्षक क्या कर पाएगा ?
अकेला चना कभी भाड़ नहीं फोड़ सकता है। जब शिक्षक और छात्र दोनों में तालमेल होगा, तभी शिक्षा का कार्य संपन्न होगा। अभिभावकों को भी चाहिए कि वह अपने बच्चों पर ध्यान दें तथा अध्यापकों के साथ सहयोग करें। यदि हम खेत में बीज डालें, परंतु हल ना चलाएं तो फसल होना संभव नहीं है।
इसीलिए, शिक्षकों को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि विकास की दौड़ में कक्षा का एक भी छात्र पीछे ना रह जाए।
एक शिक्षक सुचारू रूप से तभी कार्य कर पाएगा, जब उसे प्रशासन, छात्र और अभिभावक सभी से सहयोग मिले। शिक्षा के गिरते स्तर के लिए केवल शिक्षक ही नहीं, बल्कि समाज का प्रत्येक वर्ग जिम्मेदार है। हमें शिक्षकों को उचित आदर एवं सम्मान देना चाहिए, जिसके वे अधिकारी हैं। इसके बाद ही हम उज्जवल भारत के निर्माण की कल्पना कर सकते हैं। मेरा शिक्षकों से आग्रह है कि राष्ट्र निर्माण की जिम्मेदारी जो उन पर सौंपी गई है, वे उसका अच्छे से निर्वाहन करें, क्योंकि पढ़ाई हमारे जीवन का मुख्य आधार है। पढ़ने के बाद ही चिकित्सक, अभियंता, वैज्ञानिक, वकील और एक अच्छे नागरिक बन सकते हैं।
परिचय-डॉ. प्रताप मोहन का लेखन जगत में ‘भारतीय’ नाम है। १५ जून १९६२ को कटनी (म.प्र.)में अवतरित हुए डॉ. मोहन का वर्तमान में जिला सोलन स्थित चक्का रोड, बद्दी(हि.प्र.)में बसेरा है। आपका स्थाई पता स्थाई पता हिमाचल प्रदेश ही है। सिंधी,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले डॉ. मोहन ने बीएससी सहित आर.एम.पी.,एन. डी.,बी.ई.एम.एस.,एम.ए.,एल.एल.बी.,सी. एच.आर.,सी.ए.एफ.ई. तथा एम.पी.ए. की शिक्षा भी प्राप्त की है। कार्य क्षेत्र में दवा व्यवसायी ‘भारतीय’ सामाजिक गतिविधि में सिंधी भाषा-आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति का प्रचार करने सहित थैलेसीमिया बीमारी के प्रति समाज में जागृति फैलाते हैं। इनकी लेखन विधा-क्षणिका,व्यंग्य लेख एवं ग़ज़ल है। कई राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन जारी है। ‘उजाले की ओर’ व्यंग्य संग्रह)प्रकाशित है। आपको राजस्थान द्वारा ‘काव्य कलपज्ञ’,उ.प्र. द्वारा ‘हिन्दी भूषण श्री’ की उपाधि एवं हि.प्र. से ‘सुमेधा श्री २०१९’ सम्मान दिया गया है। विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय अध्यक्ष(सिंधुडी संस्था)होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-साहित्य का सृजन करना है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद एवं प्रेरणापुंज-प्रो. सत्यनारायण अग्रवाल हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी को राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान मिले,हमें ऐसा प्रयास करना चाहिए। नई पीढ़ी को हम हिंदी भाषा का ज्ञान दें, ताकि हिंदी भाषा का समुचित विकास हो सके।”